अपराध और पाप एक दूसरे से भिन्न होते हैं।अपराध दंडनीय होता है, पाप निंदनीय होता है। एक के लिए प्रताड़ना कारगर होती है तो दूसरे के लिए प्रायश्चित लाभकारी होता है। अपराध प्रत्यक्ष होता है तो पाप प्रच्छन्न ( छिपा हुआ ) होता है। एक परिस्थितियों की औलाद है तो दूसरा विकृति की संतान। अपराधी को हम पापी सिद्ध कर सकते हैं, किंतु पापी को अपराधी साबित करना मुश्किल होता है। संसार में अपराध की तुलना में पाप अधिक है ||
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