भारत के यादगार सौ विद्वान -75, महात्मा लगध
(महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक एवं वेदांग ज्योतिष के प्रणेता)
{संसार का सबसे प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ वेदांग-ज्योतिष}
[सर्व प्रथम राशि, युग, वर्ष, माह, पक्ष तथा तिथि देने वाले का सही-सही समय,जन्मऔर तिथि को कोई नहीं जानता]
प्रारंभिक वैदिक युग के जीवन तथा धर्म-कर्म में वेदों से एक नियम के तहत यज्ञकर्म किया जाता था। वेद थोड़ा पुराना हो जाने के बाद नए शास्त्र का निर्माण किया गया। भाषा समझने के लिए व्याकरण, आकाश में ग्रह, नक्षत्र के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ज्योतिष एवं गणित लिखा गया, धर्म, कर्म, यज्ञ के लिए जो पुस्तकें लिखी गई उसे कल्पसूत्र कहते हैं। इस प्रकार छः विषय या शास्त्र पर पुस्तकें लिखी गई जिसे वेद का अंग या वेदांग कहा गया। ईसा पूर्व 1350 वर्ष में लिखा गया महात्मा लगध व्दारा वेदांग ज्योतिष कालविज्ञापक शास्त्र है। इसमें कहा जाता है कि ठीक तिथि, नक्षत्र पर किये गये यज्ञादि कार्य फल देता है। इस विषय में इससे स्पष्ट होता है कि वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृताः कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञाः। तस्मादिदं कालविधान शास्त्रं यो ज्योतिशं वेद स वेद यज्ञान् ।। चारों वेदों में अलग-अलग ज्योतिष थे। इसमें ॠक तथा यजुः ज्योतिष के प्रणेता आचार्य महात्मा लगध थे। ज्योतिष शास्त्र के रूप में तीन स्कंधों में,सिध्दान्त, संहिता एवं होरा का मुख्य रूप से भूमिका है। सिध्दान्त संहिता होरा रूपं स्कन्धत्रयात्मकम् । वेदस्य निर्मलं चक्षुज्र्योतिश्शस्त्रम मनुत्तमम्।। वेदागं ज्योतिष, सिध्दान्त ज्योतिष है, जिसमें सूर्य तथा चन्र्द की गति का गणित है। इसी के आधार पर दिन, माह, वर्ष, तथा युग का निर्माण किया गया है। यह गणित श्रेष्ठ है यथा शिखा मयूराणां नागानां मनयो यथा। तव्दद वेदागं शास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थिम्।। अर्थात जैसे मोर में शिखा एवं नाग में मनी श्रेष्ठ है उसी तरह ज्योतिष अथवा वेदांग में गणित सबसे उपर है। गणित एवं खगोल विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए हर संभव प्रयास लगध व्दारा वेदांग ज्योतिष कालविज्ञापक शास्त्र से संसार में प्रारंभ माना जाता है। यह एक ऐसा विचार और पहल था जिससे खुले आसमान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर गणित के सहारे समय, काल एवं ॠतुओ के बारे में जानकारी हासिल किया गया। यह काल गणना धर्म कर्म के कारण उत्पन्न हुआ लेकिन उसका आधुनिक आज का स्वरूप निश्चित रूप से मनुष्य के लिए भारत से प्रारंभ किया गया था। 24 घंटे को एक दिन एवं 15 दिन का एक पक्ष, तथा दो पक्ष का एक माह और 366 दिनों का एक वर्ष एवं एक वर्ष में छः ऋतु का गणित लगध ने सर्व प्रथम दिया था जो लगभग सही है। सिर्फ नाम में अंतर हुआ है एवं काल गणना का कुछ अंश मे परिवर्तन हुआ है। पृथ्वी पर दिन-रात के लिए सुविकसित ज्ञान प्राप्त करने के बाद इसे सूर्य तथा चन्द्र से आकाश में इनके बारे में तारा मंडल जिसे नक्षत्र एवं राशि से संबंध को त्रिराशिक नियम से जोडा गया। यह ज्ञात राशि का त्रैराशिक नियम इस प्रकार है। Rules of Three इत्य् उपायसमुद्देशो भयोऽप्य्अन्हः प्रकल्पयेत्। ज्ञेय राशि गताभ्यस्तं विभजेत ज्ञानराशिना ।। “By the quantity for which the result is wanted,and divided by the quantity for which the know result is given” आज का भारत फिर से क्या विश्व गुरु बन सकता है। एक समय था जब भारत सोने की चिड़िया एवं विश्व गुरु था। हमारे यहां से सोना और विज्ञान दूसरे देश में भले ही विकसित हुआ लेकिन भारत ने ही धातु और ज्ञान को संसार में पहुंचाया था। लगध व्दारा दिया गया माह तथा ॠतु का नाम कुछ इस प्रकार था। बारह माह, 1-तपः, माघ 2-तपस्य, फाल्गुन 3-मधु, चैत्र 4-माधव, वैशाख 5-शुक्र, जेष्ठ 6-शुचि, अषाढ़ 7-नमः,श्रावन 8-नभस्य,भाद्र 9-इष, आश्विन 10- उर्ज,कार्तिक 11-सहः, मार्गशीर्ष, 12-सहस्थ अर्थात माघ है। छः ॠतुओ का नाम शिशर, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद एवं हेमन्त है। इस प्रकार लगध ने दिवस, मास, ॠतु, लग्न एवं धर्म-कर्म के लिए जो व्यवस्था दिया था उसी से संसार ने इसे आगे बढाया। लगध का कहना था कि वगैर ज्योतिष के ज्ञान लिए कोई धर्म कर्म नहीं करना चाहिए। हमारे लिए जिन्होंने समय दिया आज सही-सही उनका ही समय हम नहीं जानते हैं। आज जब हम तकनीक के सहारे लाखों, करोड़ की बातें करते हैं तो ऐसे विव्दान के लिए एक सही समय को जान पाना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन राज सत्ता चलाने वाले को इतना कुछ जरूर करना चाहिए।