आशा धृतिं हन्ति  समृद्धिमन्तकः क्रोधः श्रियं हन्ति यशः कदर्यता |

अपालनं हन्ति पशूंश्च  राजन्न एकः क्रुद्धो ब्राह्मणो हन्ति  राष्ट्रं    ||

-महासुभषितसंग्रह (5427)

भावार्थ –   हे राजन  !   (अत्यधिक) आशावादी होने से मनुष्य का

आत्मविश्वास, पराक्रम तथा समृद्धि  नष्ट हो जाती  है | क्रोध करने से

प्रसन्नता, तथा कृपणता (कंजूसी) से यश नष्ट हो जाता है.|  सही देख-रेख

न होने से पालतू पशु नष्ट  हो   जाते है तथा यदि कोई विद्वान्  ब्राह्मण

(सही व्यवहार न होने के कारण ) क्रुद्ध हो जाता है तो फिर सारे राष्ट्र का

नाश हो जाता है |