काशी-काशी   शिव:  शिव:  ===

“काशी-रहस्य” में भगवान् शिव माता पार्वती से कहते हैं~

“योगोऽत्र निद्रा कृतभ: प्रचार:

स्वेच्छाशनं देवि महानिवेद्यम् ।

लीलात्मनो  देवि  पवित्र  दानम् ,

जप:  प्रजल्पं  शयनं  प्रणाम: ।।”

अर्थात् =   हे देवी !  काशी में निद्रा  योगनिद्रा है ,  काशी में चलना योग की खेचरी मुद्रा है ,  काशी में स्वेच्छा से किया गया भोजन भी नैवेद्य है , अपनी लीला ही पवित्र दान है , बातचीत ही जप है , सोना – बैठना प्रणाम की तरह फलदायी है ।

अतः मुक्ति को दुर्लभ समझ कर  पत्थर से अपने पैर तोड़कर काशी में पड़ा रहे ।

काशीपति भगवान् शिव के आश्रित होना ही जन्म – मरण से छूटना है ।   जिसने अपने कान से दों अक्षरों वाला “काशी”  मन्त्र सुना ,  फिर वह लौटकर संसार में नहीं आता ।

“शिव: काशी शिव: काशी काशीकाशी शिव: शिव: ।

त्रिवारं  य:  पठेन्नित्यं  काशी  वास  फलं  लभेत् ।।”

इस मन्त्र का नित्य पाठ करने से कोई कहीं भी रहे , उसे काशी-वास का फल प्राप्त होता है अथवा  तीन दिन काशी-वास करके इस मन्त्र का जप करने वाला कहीं भी मरे , उन्हें काशी में मृत्यु का फल प्राप्त होता है ।

सभी ऊसरों में काशी महान ऊसर है ,  जैसे  ऊसर में बोया बीज नहीं उगता , वैसे ही काशी में शुभाशुभमिश्रित-कर्म रूपी बीज पुनर्जन्म रूपी फल नहीं देता ।

सूर्यवंशी राजा मान्धाता प्रतिदिन अयोध्या से हिमालय जाकर भगवान् शंकर की आराधना करते थे ।

बिना दर्शन किये अन्न-जल नहीं लेते थे , किन्तु जब वृद्ध हो गये , तब शिवजी को काशी में ले जाने के लिए घोर तप किया ।

उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शंकर ने वर मांगने को कहा ,  तब उन्होंने शिवजी से काशी जाने की प्रार्थना की ।

शिवजी ने कहा —- “तुम्हारी इच्छा से मैं १ कला से यहां रहूंगा , १५ कलाओं से काशी-वास करूँगा ;  जिससे बाल- वृद्ध- रोगी- निर्धन  सबका कल्याण होगा तथा काशी-केदारखण्ड में मरने वाले महापापीयों को भैरवी- यातना से मुक्त करूँगा ।”

तबसे केदारखण्ड में मरने वाले महादुष्टों को भी भगवान् बिना भैरवी यातना के मुक्त करते हैं ।

जैसे कोई व्यभिचारी स्त्री या पुरूष को कोई रोग हो जाये , तो उपचार के लिए चिकित्सक के पास जाने पर चिकित्सक उन्हें डांटता नहीं है , किन्तु हर प्रकार से सहानुभूति देता है ।

वैसे ही जन्म-मरण रूपी महारोग के चिकित्सक भगवान् शंकर केदारखण्ड में मरने वालों को मुक्त करते हैं, उनके दोष नहीं देखते ।

काशी-वास करने वालों को भावना करनी चाहिए कि भगवान् शिव पिता तथा पार्वती माता हैं ,  गङ्गाजी मौसी हैं ,  ढुंडीराज गणेश जी युवराज हैं ,  वहां के कोतवाल भैरव मेरे बड़े भाई हैं , मणिकर्णिका बहन हैं , मेरी बुद्धि ही मेरी पत्नी है , सत्कर्म रूपी पुत्र एवं पुत्री है,  काशी के निवासी सभी पशु-पक्षी , जीव-जन्तु मेरे परिजन ही है —– ऐसे भावना करने वाले का अवश्य ही कल्याण होता है ।

🌹🔱जय शिवकाशी 🔱🌹📿