गुरु भक्ति “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुःसाक्षात्परब्रह्म,तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।” अर्थात गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश है । परंतु उससे भी ऊपर परब्रह्म है । और उनसे भी ऊपर साक्षात् मौजूद प्रत्यक्ष गुरुदेव है । सत्संग में सन्तजन जी समझते हुए कहते है हर एक व्यक्ति पूजा-पाठ, भक्ति तो करता है कोई अलग अलग यज्ञ करता है । कोई कुंडलिनी साधना करता है । कोई जप-तप तो कोई ध्यान करता है । फिर भी आज तक किसी को भी ईश्वर नही मिला । किसी को आत्मा का साक्षात्कार नहीं हो सका है । कोई कर्म योग करता है तो कोई ध्यान योग करता है । परंतु सब से उत्तम “गुरु भक्ति योग” है । उससे भी उत्तम “सुर्त शब्द योग” है । परंतु सुर्त शब्द योग सोऽहम् को समझने के लिए गुरु भक्ति योग को समझना अति आवश्यक है । यदि कोई साधक गुरु भक्ति योग समझ जाता है तो पल भर के लिए भी वह भक्ति से वंचित नही रहता है । भक्ति किये बिना, अपने गुरुदेव, गुरु सेवा, गुरु ज्ञान के बिना कोई भी परमात्मा के द्वार अर्थात मोक्ष को प्राप्त नहीं हो सकता । “कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती जी भगवान शंकर से कौतूहल वश पूछते हुए कहती है, हे देव इस जगत में श्रेयकर क्या है ? “तब भगवान शंकर देवी से कहते है । इस जगत में सब से दुर्लभ “मनुष्य” तन कि प्राप्ति है । फिर पार्वती जी पूछती है । उससे भी दुर्लभ क्या है ? प्रभु कहते है । उससे भी दुर्लभ है । व्यक्ति को “धर्म” को जानने समझने कि जिज्ञासा प्रगट होना है । और उससे भी दुर्लभ जीव को “ब्रह्म” आत्मा, परमात्मा कि जिज्ञासा प्रगट होना है । और उससे भी दुर्लभ व्यक्ति को “गुरु” प्राप्त होना है । और उससे भी दुर्लभ व्यक्ति को “सद्गुरु” कि प्राप्ति होना है । उस में सोने पे सुहागा “सद्गुरु के साथ शब्दी सद्गुरु आत्म तत्व विवेकी” की प्राप्ति होना है । उससे भी दुर्लभ व्यक्ति को “शब्द, नादःब्रह्म” कि प्राप्ति होना है । और उससे भी दुर्लभ शिष्य का गुरुदेव से “अद्वैत” होना है । माता पार्वती जी शिवजी से पूछती है । “गुरु और गुरजी कि पादुकाजी का क्या महत्व है ?” तो भगवान शंकर कहते है । कोई व्यक्ति कोटि कोटि जप-तप, करोड़-करोड़ व्रत, यज्ञ, महा मंत्र, दान, देवी-देवता कि अर्चना तथा तीर्थ करले और इन सब को तराजू कि एक पलड़े में रख ले और दूसरी तरफ शिष्य सिर्फ “गुरुदेव कि श्री पादुकाजी” का स्मरण करे । फिर भी गुरु पादुकाजी का स्मरण का पलड़ा ज़्यादा भारी होता है । गुरुवर कि “श्री पादुकाजी” के स्मरण मात्र से शिष्य को अनंत फल कि प्राप्ति होती है । किस तरह से श्री पादुकाजी का स्मरण किया जाता है ? सिर्फ श्री पादुकाजी को देखना स्मरण नही होता है । “स्मरण शयाने निर्विचार होकर, पूर्ण समर्पण भाव से स्मरण करना पढता है । श्री गुरु पादुकाजी ही मेरे लिए ईश्वर समान है और मेरा जनम आप सद्गुरु नाथ जी के लिए और आपकी ख्याति, आपके ज्ञान को फैलाने के लिए ही हुआ है । हे मेरे नाथ मेरा सभी कृत्य आपको ही अर्पित है । यैसे समर्पित शुद्ध भाव से ही संभव है । “ऐसे शुद्ध आत्मिय भाव से श्री पादुकाजी का स्मरण करने को ही स्मरण कहते है । फिर भगवान शंकर माता से कहते है । ना सामान्य, ना साधारण बल्कि कोई व्यक्ति बड़े से बड़े महा रोग से भी ग्रस्त हो तो “श्री गुरु पादुकाजी” के स्मरण से वो व्यक्ति के रोग पूरी तरह मिट जाता है । यदि किसी को किसी भी तरह भय जैसे अदृश्य, दृश्य शत्रु, किसी व्यक्ति, पाप, भूत-प्रेत किसी भी प्रकार का भय हो तो व्यक्ति सिर्फ एक बार श्री गुरु पादुकाजी का स्मरण करे तो उसका हर भय समाप्त हो जाता है । शिवजी कहते है । कोई व्यक्ति बहुत क्रूर, दूर आहारी, दुराचारी हो गलत व्यसन का संग करने वाला हो तो “श्री गुरु पादुकाजी” का स्मरण करने से उसमें उसकी वाणी, वर्तन, आहार व्यावहार में सुधार आता है । भगवान शंकर माता पार्वती से कहते है । “यदि कोई सामान्य व्यक्ति गुरुदेव के उत्तम शिष्य के भी दर्शन करले तो उस व्यक्ति का भी कल्याण होता है । परंतु शिष्य ऐसा हो जो निरंतर गुरु भक्ति, गुरु सेवा और आठो पहर गुरु नाम तथा श्री पादुकाजी का स्मरण में लीन रहता हो । “भगवान शंकर माता पार्वती जी से कहते है । यदि कोई पूर्ण गुरु भक्ति को धारण किया हुआ शिष्य देवी देवता कि भी अर्चना करता है तो उससे शिष्य का नही अपितु देवी-देवता का उद्धार होता है । इतनी उत्तम गुरु भक्ति और गुरु शिष्य का महत्व है । शिवजी कहते कोई भक्त, शिष्य अनन्य प्रेम, अनन्य धीरज, अनन्य विश्वास और तन, मन, सूर्ता और निर्ता को स्थिर करते हुए पूर्ण भाव से गुर पादुकाजी का स्मरण करता है तो वो “मुक्ति” को प्राप्त करने वाला तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारो पुरुषार्थ को सिद्ध करने वाला बनता है । ॐॐॐॐॐॐॐॐ
Recent Comments