

जन्मकुंडली में सुखी और अच्छा वैवाहिक जीवन

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विवाह और वैवाहिक का विचार करने के लिए जन्मकुंडली का सातवाँ भाव, सातवे भाव का स्वामी, विवाह सुख के कारक लड़के के लिए शुक्र, लड़की के लिए बृहस्पति को देखा जाता है।

शुक्र पुरुष के लिए पत्नी का कारक है।

बृहस्पति स्त्री के लिए पति का कारक होता है।

इन सब भाव/भावेश ग्रहो के आलावा सुखी और अच्छे वैवाहिक जीवन के लिए चौथे भाव जो गृहस्थी का है, 5वें भाव जो संतान का है क्योंकि सन्तान वैवाहिक जीवन के सुख का कही न कही आधार है संतान के आभाव में गृहस्थी कही न कही अधूरी रहती है।

बारहवे भाव जो कि शैय्या सुख का है का अच्छा होना भी अच्छे सुखी वैवाहिक जीवन का एक अंग है।।

जन्मकुंडली के सप्तमेश(सातवे भाव का स्वामी) का बली होकर शुभ राशि में केंद्र त्रिकोण में बैठना गुरु शुक्र शुभ बुध पूर्ण बली चन्द्र से केंद्र या त्रिकोण में युक्त या द्रष्ट होने से साथ ही पुरुष की कुंडली में शुक्र स्त्री कई कुंडली में बृहस्पति के बली और शुभ होने पर वैवाहिक जीवन बहुत अच्छा और सुखद रहता है।

सप्तमेश जब गुरु शुक्र बुध या चन्द्र से युक्त द्रष्ट हो तो इनमे यह शुभ ग्रह 6, 8, 12वें भाव के स्वामी न हो क्योंकि यह स्थान अशुभ होते है ऐसे में यदि 6, 8, 12 भाव के स्वामी होकर यह शुभ ग्रह सप्तमेश पर प्रभाव डालेंगे तो इनके शुभ प्रभाव में कोई विशेष शुभता न होकर कुछ न कुछ समस्या रह सकती है।

इसी तरह सप्तमेश के शुभ और बली होने के साथ सप्तम भाव पर भी ज्यादा से ज्यादा शुभ प्रभाव का होना सप्तम भाव पर गुरु शुक्र शुभ बुध पूर्ण बली चन्द्र की दृष्टि सुखी और अच्छा वैवाहिक जीवन देती है।

सप्तम भाव में बैठे ग्रह इतना ज्यादा शुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन के लिए नही देते जितना शुभ ग्रहो की दृष्टि सप्तम भाव सप्तमेश पर होने से अच्छा फल मिलता है।

शुभ ग्रहो का प्रभाव वैवाहिक जीवन और विवाह को सुखी बनाता है जबकि शनि मंगल राहु केतु सूर्य इनमे से 2 या 3 या ज्यादा ग्रहो का प्रभाव विवाह होने और वैवाहिक जीवन में दिक्कते करता है।

शनि मंगल सूर्य सप्तमेश होकर सप्तम भाव को देखे या इनमे से कोई सप्तमेश होकर सप्तम भाव में बैठकर शुभ ग्रहो से द्रष्ट हो या बृहस्पति की दृष्टि सप्तम भाव पर होने से वैवाहिक जीवन सुखी और अच्छा रहता है।

सप्तमेश नैसर्गिक शुभ मित्र ग्रहो से मतलब केंद्र त्रिकोण सम्बन्ध से युक्त होने से अच्छी ससुराल मिलती है ऐसे जातक/जातिका का विवाह के बाद वैवाहिक जीवन अच्छा रहता है।

मेष लग्न की कुण्डली में चंद्र जो चोथे भाव केंद्र का स्वामी है बृहस्पति नवे भाव त्रिकोण का स्वामी होकर बृहस्पति चन्द्र आपस में केंद्र या त्रिकोण में सम्बन्ध बनाए और सप्तमेश शुक्र बृहस्पति चंद्र के युति या दृष्टि सम्बन्ध में हो हो मतलब गुरु चन्द्र से सप्तमेश शुक्र का सम्बन्ध बहुत अच्छी सुसराल, और विवाह के बाद बहुत अच्छा जीवन और वैवाहिक जीवन रहता है।

ऐसे योग से जातक या जातिका का भाग्य भी विवाह के बाद सोभाग्य में बदल जाता है।इस तरह ग्रह योग और स्थिति के अनुसार सुखी और अच्छा वैवाहिक जीवन के योग बनते है।।

जन्मकुंडली के आलावा नवमांश कुंडली में नवमांश लग्न लग्नेश, सप्तम भाव भावेश शुभ प्रभाव गुरु, शुक्र, शुभ बुध, पूर्ण बली चन्द्र से युक्त होना भी अच्छा वैवाहिक जीवन देता है।

अगर जन्मकुंडली में अच्छे विवाह वैवाहिक जीवन के योग न हो तो नवमांश कुंडली में होने पर भी इसी तरह शुभ फल वैवाहिक जीवन संबंधी मिलते है।
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