महामना के अथक प्रयास एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव का एक परिचय- ज्ञान असीमित है, लेकिन उसका लक्ष्य मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियों को समाप्त करना है। -पंडित मदनमोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आज देश के सर्वोतम विश्वविद्यालयों में नंबर १ के पद पर फिर से एक बार सुशोभित हो रहा है , इसके पहले सन २०१० में यह नंबर १ का ख़िताब प्राप्त कर चुका है l देश के कोने –कोने के लोग इस विश्वविद्यालय में आने के लिए सपने देखते हैं और यह सब देखकर उस महान आत्मा को नमन करने का मन अनायास ही करने लगता है जिसने कभी इस विश्वविद्यालय को सबसे अलग और सबसे सर्वोत्तम बनाने का ख्वाब देखा था और जिसे सच करने का अथक प्रयत्न भी किया , आज उन्ही का भागीरथ प्रयास है जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय देश के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयो में गिना जाता है | पध्दतिशास्त्र – प्रस्तुत शोध में द्वितीयक स्त्रोतों पर आधारित है , इसकी प्रकृति वर्णनात्मक तथा विश्लेषात्मक हैं | महामना मालवीय जी ने सन् 1916 ई. में ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ की स्थापना की और कालांतरों में यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बन गया हैं। वास्तव में यह एक ऐतिहासिक कार्य ही उनकी शिक्षा और साहित्य सेवा का अमिट शिलालेख है। पं0 मदन मोहन मालवीय जी के व्यक्तित्व पर आयरिश महिला डॉ. एनी बेसेंट का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा, जो हिन्दुस्तान में शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु दृढ़प्रतिज्ञ रहीं। वे वाराणसी नगर के कमच्छा नामक स्थान पर ‘सेण्ट्रल हिन्दू कॉलेज’ की स्थापना सन् 1889 ई. में की, जो बाद में चलकर हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का केन्द्र बना। पंडित जी ने तत्कालीन बनारस के महाराज श्री प्रभुनारायण सिंह की सहायता से सन् 1904 ई. में ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ की स्थापना का मन बनाया। सन् 1905 ई. में बनारस शहर के टाउन हाल मैदान की आमसभा में श्री डी. एन. महाजन की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पारित कराया। सन् 1911 ई. में डॉ. एनी बेसेंट की सहायता से एक प्रस्तावना को मंजूरी दिलाई जो 28 नवम्बर 1911 ई. में एक ‘सोसाइटी’ का स्वरूप लिया। इस ‘सोसायटी’ का उद्देश्य ‘दि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी’ की स्थापना करना था। 25 मार्च 1915 ई. में सर हरकोर्ट बटलर ने इम्पिरीयल लेजिस्लेटिव एसेम्बली में एक बिल लाया, जो 1 अक्टूबर सन् 1915 ई. को ‘ऐक्ट’ के रूप में मंजूर कर लिया गया। 4 फरवरी, सन् 1916 ई. (माघ शुक्ल प्रतिपदा, संवत् 1972) को ‘दि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी’ की नींव डाल दी गई | बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय- काशी हिन्दू विश्विद्यालय वर्तमान समय में शिक्षा के लिए वरदान साबित हो रहा है l महामना मालवीय जी अपने समय में एक ऐसे राष्ट्रीय नेता थे जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र समाज के उत्थान के लिए भागीरथ प्रयत्न किये l उन्होंने हमेशा समाज तथा राष्ट्र के हित के लिए चिंतन तथा कार्य किया l भारत स्वत्रंता से पहले ब्रिटिश शासन के अंतर्गत था , उस समय भारतीयों के लिए दासता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए तथा अपनी खोई हुई पहचान पुनः प्राप्त करने के लिए और भारतीय आत्मा को आर्य – ॠषियो के सनातन व शाश्वत सन्देश से जिवंत एव जाग्रत कर , लोगो को साहस , स्वाभिमान व शौर्य के साथ जीने तथा उनमे अदम्य इच्छा शक्ति उत्त्पन्न करने में महामना मालवीय जी ने प्रमुख भूमिका निभाई | आप किसी ऐसे मत के समर्थक नही थे जिससे नही थे जिससे मनुष्य जाति के प्रगति तथा मानवता के मार्ग में कोई बाधा आये , आप हमेशा नवीनता के पक्षधर थे ,आपका मानना था की नवीन खोज से देश , समाज व मानव सभ्यता का हित हो सकता हैं | शिक्षा के क्षेत्र में महामना भारत तथा पश्चिमी शिक्षा के संश्लेषण के पक्ष में थे, आपका मानना था की शिक्षा का सर्वागीण विकास होना चाहिए , शिक्षा और ज्ञान कही से भी प्राप्त हो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए क्योकि अज्ञानता और अभावो से मुक्ति ही वास्तविक मोक्ष हैं l भारत के विधार्थियो को भारतीय इतिहास और सभ्यता का ज्ञान रखते हुए पश्चिमी सभ्यता के संचित ज्ञान , अनुभव विचारधाराओ में परिशिक्षित होना चाहिए | १९३० के अपने लिखित वक्तव्य में महात्मा गाँधी ने कहा था की “काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मालवीय जी का प्राण है और मालवीय जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राण है”l महामना का कहना था की “ हमे ऐसा विश्वविद्यालय दो , जहा उच्च से उच्च शिक्षा देने के साधन हो l बुद्धि के विकास के लिए , साहित्य के गंभीर अध्ययन के लिए व्यावसायिक आदर्श को उच्च बनाने के लिए जहा प्रत्येक प्रकार के साधन उपलब्ध हो , जहा पर विद्धवान सुस्थिर , शांतिमय वातावरण में रह सके”l मालवीय जी का कहना था की विश्वविद्यालय का उद्देश्य शिक्षा का एक ऐसा महान केंद्र बनाना है जहा प्रदान की जाने वाली शिक्षा स्वस्थ और सर्वोतम हो l यदि एक विश्वविद्यालय अपने विधार्थियो का सिर्फ आत्मिक विकास करता है तब उसका कार्यक्रम उतना ही आधा –अधूरा है ,जब वह उनका सिर्फ मानसिक विकास करता हैं l विश्वविद्यालय का उद्देश्य धर्म और नीति को शिक्षा का एक अनिवार्य अंग बनाकर युवको का चरित्र निर्माण करना है , क्योकि हमारा विश्वास है की धर्म ही चरित्र का निश्चित आधार और आनंद का सच्चा स्त्रोत हैं | उपरोक्त प्रस्तुत व्याख्यानों से ऐसा प्रतीत होता है की महामना के अथक प्रयास या यू कहा जा सकता है की ऐसा विश्वविद्यालय का सपना जो न केवल भारतीय विधार्थियो को शिक्षित बनाये बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति जागरूक भी बनाये l उनका कहना था की मई विश्वविद्यालय के साथ ‘हिन्दू’ शब्द जुड़ा रखने का इसलिये पक्षधर हू हिन्दुत्व में जो भी श्रेष्ठ सिन्धात और आदर्श है , उनका यहा से प्रचार –प्रसार होता रहे l इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीयता एवं भारतीयता का मूर्त रूप बनाना हमारा उद्देश्य हैं l विश्वविद्यालय ही देश की एकता बनाये रखने के लिए उपयुक्त स्थान हैं”l तो ऐसा कहा जा सकता है की ऐसा सत्य प्रतीत होता है की काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कण –कण में विद्या और ज्ञान समाया हुआ है।
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