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महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण :-
जौनपुर सुल्तान के राज्य में सूफी सन्त मालिक मुहम्मद जायसी ने 1540 ईसवी में अवधी भाषा में “पद्मावत” काव्य की रचना की जिसने महारानी पद्मावती के आख्यान को लोकप्रिय बना दिया | उसी शती में चित्तौर के महाराणा रत्नसिंह के प्रमुख सामन्त गोरा और बादल पर भी (हेमरतन द्वारा ‘गोरा बादल पद्मिनी चौपाल’) लोकगाथाएं लिखी गयीं | और भी अनेक कथाएं और गीत प्रचलित हुए, मोटे तौर पर उन सबकी मूल कथाओं में साम्य है, जिस कारण आधुनिक युग के छद्म-सेक्युलर इतिहासकारों का कथन है कि महारानी पद्मावती केवल साहित्यिक कल्पना हैं जिनका आधार जायसी की कल्पना है |
“पद्मावत” काव्य के अनुसार चित्तौर शरीर की प्रतीक है, महाराणा रत्नसिंह (पद्मावत में रतनसेन) उस शरीर के मन हैं, सिंहल हृदय है जहां की राजकुमारी पद्मावती थीं, पद्मावती ज्ञान की प्रतीक थीं, और अलाउद्दीन वासना का |
“पद्मावत” काव्य के अनुसार नारियां चार प्रकार की होती हैं जिनमें सर्वोत्तम नारियों को “पद्मिनी” कहा जाता है, वे केवल सिंहल में ही होती हैं और उनमें सर्वोत्तम का नाम पद्मावती था | जिन लोगों ने “पद्मावत” काव्य नहीं पढ़ा वे पद्मावती को ही पद्मिनी भी कह देते हैं, यद्यपि पद्मावती व्यक्तिवाचक नाम है और पद्मिनी नारियों के एक प्रकार का |
“पद्मावत” काव्य में अनेक काल्पनिक बातों का समावेश है, जैसा कि साहित्यिक कृतियों में प्रायः होता है, और एक ब्राह्मण ‘राघव चेतन’ को विश्वासघाती बताया गया है जिसने दिल्ली जाकर अलाउद्दीन को पद्मिनी किस्म की सिंहल नारियों के बारे में जानकारी दी | सूफी सन्तों में ब्राह्मणों के प्रति द्वेष आम बात रही है, क्योंकि हिन्दू समाज में ब्राह्मणों को अपदस्थ करके ये सूफी हिन्दुओं का आध्यात्मिक गुरु बनना चाहते थे | इन साहित्यिक रचनाओं के विवेचन में न जाकर यहाँ केवल ऐतिहासिक तथ्यों पर बात करें — “पद्मावत” काव्य के अनुसार महारानी पद्मावती के साथ वहाँ की सभी नारियों ने अलाउद्दीन से इज्जत बचाने के लिए जौहर किया था |
यह बात सच है कि जायसी से पहले रानी पद्मावती के नाम का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता, जिसको आधार बनाकर इरफ़ान हबीब और सतीश चन्द्र जैसे कुछ आधुनिक सेक्युलर (हिन्दू-विरोधी) इतिहासकारों का कहना है कि रानी पद्मावती केवल कवि की कल्पना है | इस आधुनिक ‘खोज’ के पीछे मंशा है अलाउद्दीन के दामन पर लगे दाग को धोना |
अब अलाउद्दीन के काल के प्रत्यक्षदर्शी प्रमाण की बात करें | अलाउद्दीन ने 28 जनवरी 1303 ईस्वी (जूलियन कैलेन्डर) को चित्तौर पर आक्रमण किया, किन्तु आठ महीनों की घेराबन्दी के बाद ही चित्तौर पर कब्जा कर सका | उसके दरबारी लेखक अमीर खुसरो ने “खजा’इन उल फुतूह” (“जीत के खजाने”) पुस्तक में इस युद्ध का वर्णन किया, जिसमें वह अलाउद्दीन के साथ गया था और अलाउद्दीन ने जब चित्तौरगढ़ के भीतर प्रवेश किया तब अमीर खुसरो भी सुलतान के साथ था | अमीर खुसरो के अनुसार उन आठ महीनों में दो बार गढ़ पर सीधा आक्रमण किया गया जिसमें सुलतान की पराजय हुई | अन्त में अलाउद्दीन की विजय युद्ध के कारण नहीं हुई इसपर सारे इतिहासकार एकमत हैं, उनका मानना है कि गढ़ के भीतर रसद समाप्त होने पर था | जायसी के अनुसार इसी कारण राजपूतों ने सन्धि का प्रस्ताव स्वीकारा, किन्तु बाद में सुलतान ने धोखा दिया |
26 अगस्त 1303 को अलाउद्धीन ने चुने हुए दरबारियों के साथ चित्तौरगढ़ में प्रवेश किया, उन चहेतों में अमीर खुसरो भी था | हिन्दू-विरोधी इतिहासकारों का तर्क है कि अमीर खुसरो ने जौहर का उल्लेख नहीं किया | किन्तु चित्तौरगढ़ में अलाउद्दीन के साथ प्रवेशकाल का अमीर खुसरो ने निम्नोक्त वर्णन किया था :-
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“अल हिजरी 703 के मुहर्रम मास की 11 तारीख को सोमवार के दिन हमारे युग के सुलेमान (अलाउद्दीन) अपने हवाई आसन (पालकी) पर सवार होकर गढ़ में घुसे जिसमें परिन्दे भी नहीं घुस सकते थे | उस (सुलतान) के नौकर (अमीर खुसरो) , जो सुलेमान की चिड़िया थे, भी साथ थे (गाने वाली पालतू चिड़िया, अमीर खुसरो सबसे प्रसिद्ध दरबारी गायक थे)| वे बारम्बार चिल्लाए – “हुदहुद, हुदहुद” (यह सुलेमान की चिड़िया का नाम था)| लेकिन मैं जवाब नहीं दे सका, क्योंकि मुझे सुल्तान के गुस्से का डर था कि सुलतान पूछते — “हुदहुद को मैं क्यों नहीं देखता, या फिर हुदहुद भी लापता (लोगों/नारियों) में से है?” और तब मैं अपनी गैरहाजिरी का कौन सा बहाना बनाता जब सुलतान पूछते – “साफ़ साफ़ कारण बताओ !” यदि सुलतान गुस्से में कहते – “मैं उसे (हुदहुद को) दण्ड दूंगा”, तो बेचारी कमजोर चिड़िया उस दण्ड को सहने की ताक़त कहाँ से लाती?”
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कुरान के सूर-27 की 22 से 28 वीं आयतों में सुलेमान (सोलोमन) राजा की कथा है जिसमें उल्लेख है कि सुलेमान की सेना जब विदेश में हमला करने गयी तो उसमें एक पालतू चिड़िया हुदहुद भी थी जो सुलेमान के शिविर में एक बार अनुपस्थित पायी गयी | सुलेमान के बारम्बार बुलाने पर हुदहुद आयी और कहा कि वह “शेबा” राज्य (बाइबिल में बारम्बार इसका उल्लेख है) की रानी बिलकिस के यहाँ गयी थी जो सूर्य को पूजने वाली शक्तिशाली और बुद्धिमती रानी थी | सुलेमान ने रानी बिलकिस को सूर्यपूजा त्यागकर इस्लाम अपनाने का सन्देश भेजा तो बिलकिस ने इनकार किया, किन्तु पुनः सन्देश आने पर डरकर इस्लाम कबूल कर लिया |
उसी प्राचीन कथा का अमीर खुसरो ने चित्तौर में प्रवेश के काल में उल्लेख किया, किन्तु उस प्राचीन कथा से एक अन्तर था – अमीर खुसरो के युग के सुलेमान (अलाउद्दीन) ने शेबा राज्य (चित्तौर) पर तो कब्जा कर लिया लेकिन उसे कोई रानी बिलकिस (पद्मिनी) नहीं मिली जिस कारण अलाउद्दीन आगबबूला था !!
अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन के भय से रानी पद्मिनी के जौहर का स्पष्ट वर्णन नहीं किया क्योंकि उस युग में अशुभ सूचना देने वालों पर सुलतान कुपित हो जाते थे ऐसी अनेक घटनाओं का उल्लेख इतिहास में मिलता है | किन्तु अमीर खुसरो ने स्पष्ट उल्लेख कर दिया कि चित्तौर में घुसने का मुख्य उद्देश्य वहां की रानी पर अधिकार ज़माना था जिसमें असफल होने के कारण सुलतान अत्यधिक क्रोध में था | अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन के क्रोध का आगे भी वर्णन किया – खुसरो के अनुसार उसी दिन अलाउद्दीन ने हिन्दू सैनिकों को मारने के बाद सभी हिन्दुओं के सामूहिक कत्लेआम का हुक्म दिया, जिस कारण खुसरों के शब्दों में “तीस हज़ार (सैनिकों के अलावा) अन्य हिन्दू सूखे घास की तरह काट डाले गए” – जिस कारण “लगता था कि खिज्राबाद के मैदान में घास की बजाय पुरुष उगते थे” (केवल हिन्दू पुरुष मारे गए, क्योंकि उन सबकी नारियों ने जौहर कर लिया था जो सुलतान के क्रोध का असली कारण था)| अलाउद्दीन ने चित्तौर पर कब्जा करने के बाद अपने नाबालिग बेटे खिज्र खां के नाम पर गढ़ का नाम खिज्राबाद रख दिया था |
अलाउद्दीन को हिन्दू नारियों की कितनी भूख थी इसका उल्लेख अमीर खुसरो ने भी उल्लेख किया — खुसरो के अनुसार अलाउद्दीन के कारण रणथम्भौर की नारियों ने सामूहिक जौहर किया, गुजरात की रानी कमलादेवी को अलाउद्दीन अपने हरम मे ले आया, उसकी बेटी देवलदेवी पर कब्जा करके अपने बेटे खिज्र खां से शादी कराने के लिए उसने यादव राज्य को नष्ट कर डाला | अलाउद्दीन की कामवासना कितनी भयंकर थी इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यह है कि जब अगस्त महीने में दिल्ली पर मंगोलों का हमला हो रहा था तब भी अलाउद्दीन चित्तौर में घुसने का प्रयास कर रहा था | दिल्ली को बचाने के लिए ही अलाउद्दीन ने सन्धि का झूठा प्रस्ताव रखकर चित्तौर में प्रवेश किया और एक सप्ताह तक कत्लेआम मचाने के बाद जब उसे लगा कि दिल्ली अब हाथ से निकल जायेगी तब जाकर वह दिल्ली लौटा, किन्तु उसे लौटने में देर हो गयी थी | दिल्ली पर कब्जा करके मंगोलों ने भयंकर लूट-मार मचा दी थी | अलाउद्दीन दिल्ली में घुसने में नाकाम रहा तो अधूरे किले सीरी में पनाह ली | लम्बे अरसे तक मंगोलों से लड़ाई चली, किसी की जीत नहीं हुई, लेकिन मंगोलों को अपने राज्य की चिन्ता थी अतः वे लौट गए | कामवासना से अलाउद्दीन पीड़ित नहीं होता तो राजधानी और पूरे राज्य को खतरे में डालकर चित्तौर को जीतने के एक सप्ताह बाद तक भी वहां गुस्से में आम नागरिकों का कत्लेआम क्यों मचाता रहता ? अतः मलिक मुहम्मद जायसी का कथन सत्य है कि अलाउद्दीन कामवासना का जीता-जागता नमूना था |
आज के वामपन्थी और अन्य हिन्दू-विरोधी इतिहासकारों का कहना है कि अमीर खुसरो ने रणथम्भौर के जौहर का उल्लेख किया किन्तु चित्तौर के जौहर का उल्लेख नहीं किया, अतः चित्तौर में न तो कोई जौहर हुआ और न ही पद्मावती का कोई अस्तित्व था ! चित्तौर में घुसते समय सुलेमान अलाउद्दीन को जिस रानी बिलकिस की तलाश थी वह यदि पद्मावती नहीं थी तो क्या सेक्युलरों की अम्मा थी ? चित्तौर में पद्मावती के नाम और जौहर का वर्णन खोलकर अमीर खुसरो ने किस डर से नहीं किया उसका कारण भी खुसरो ने बता दिया | रणथम्भौर से अलाउद्दीन का वैसा व्यक्तिगत मसला नहीं था जैसा कि चित्तौर की रानी के प्रति था, अतः रणथम्भौर के जौहर का वर्णन करने में खुसरो को भय नहीं हुआ |
आज के “गंगा-जमुनी तहजीब” वाले भ्रष्ट हिन्दू भी अमीर खुसरो का गुणगान करते है, जबकि आम हिन्दुओं के कत्लेआम का खुसरो ने गुणगान किया और लिखा कि इस तरह अलाउद्दीन ने इस्लाम को चित्तौर में जीत दिलाई !!
1568 ईस्वी में अकबर “महान” ने भी चित्तौर पर कब्जा करने के बाद वैसा ही आम कत्लेआम कराया था क्योंकि उसके सैनिकों को हिन्दू नारियां नहीं मिलती थीं — आसपास के सभी किसान भी अपने परिवारों को लेकर चित्तौरगढ़ में पनाह ले चुके थे जिस कारण लम्बे काल तक घेराबन्दी के बाद बलात्कार करने के लिए नारियां नहीं मिलने पर अकबर की सेना में भगदड़ मचने लगी थी | तब अकबर ने भी सन्धि का झूठा प्रस्ताव भेजकर रात में राजपूतों को धोखे से क़त्ल कराया और बाद में आम किसानों का भी क़त्ल कराया | इतिहासकारों का कहना है कि चित्तौर के दूसरे कत्लेआम में भी लगभग तीस हज़ार निहत्थे आम हिन्दू मारे गए थे |
चित्तौर के गौरवशाली इतिहास को कलंकित करने वालों का अपना इतिहास कलंकित है | भुज के राजपूत राजा को बॉलीवुड की एक साइड डान्सर “लीला” पसन्द आ गयी (नर्तकी के पीछे झुण्ड में नाचने वाली को साइड डान्सर कहते हैं)| उससे संजय पैदा हुआ | बाद में राजा ने उसे भगा दिया, जिस कारण संजय को राजपूतों से घृणा हो गयी | मुम्बई में उसकी माँ सिलाई करके गुजरा करती थी, साइड डान्सर का रोल हमेशा तो मिलता नहीं था | एक बेटी भी थी जो वैसा ही काम करती थी | एक ही कमरे में माँ, बेटी और बेटा सोते थे, एक ही बिस्तर पर भाई-बहन और माँ, और उसी कमरे में किचन आदि सबकुछ था | बाद में बॉलीवुड में ऊँची पँहुच वालों से परिचय हुआ तो फ़िल्में बनाने लगे ! ऊँची पँहुच वालों से परिचय कैसे होता है यह खोलकर बताना पडेगा ? (मैं किसी का नाम खोलना नहीं चाहता क्योंकि वे लोग मुकदमा कर देंगे और सारे गवाह मुकर जायेंगे, दावूद जैसे लोग इनके पीछे हैं | आपलोग भी “लीला” की लीला को गोपनीय ही रहने दें, नाम न खोलें )
रिपब्लिक-टीवी इन लोगों का सबसे बड़ा प्रचारक है क्योंकि इस मामले को कवर करने वाले प्रेस्टिटयूट का नाम है वरुण भंसाली |
जायसी के ही काल के दरबारी इतिहासकार फ़रिश्ता ने रानी पद्मावती के जौहर को सच्ची घटना बताया | बीसवीं शताब्दी तक किसी को यह नहीं सूझा था कि रानी पद्मावती को काल्पनिक सर्जना कहे ! पूरे देश के सारे हिन्दू और सारे मुस्लिम उस घटना को सच्चा इतिहास मानते आये थे |
अलाउद्दीन भारतीय नहीं था | वह तुर्क मूल का था लेकिन उसके पुरखे दो सौ वर्षों से अफगानिस्तान में बसे हुए थे जिस कारण दिल्ली का तुर्क समुदाय उसके खानदान को अफगान मानता था | एक विदेशी खूँखार दरिन्दे का गुणगान स्वतन्त्र भारत के हिन्दू इतिहासकार और फिल्मकार करें, और वह भी इतिहास को विकृत करके, तो इसका एकमात्र कारण है हिन्दू समाज की हद से अधिक सहिष्णुता |
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पद्मावत – मलिक मोहम्मद जायसी
(स्त्री-भेद वर्णन खण्ड का “पद्मिनी भाग”)
(राघव चेतन द्वारा अलाउद्दीन के समक्ष वर्णन)
…..पदमिनि सब चंदन असि, भँवर फिरहिं तेहि संग ॥3॥
चौथी कहौं पदमिनी नारी । पदुम-गंध ससि देउ सँवारी ॥
पदमिनि जाति पदुम-रँग ओही । पदुम-बास, मधुकर सँग होहीं ॥
ना सुठि लाँबी, ना सुठि छोटी । ना सुठि पातरि, ना सुठि मोटी ॥
सोरह करा रंग ओहि बानी । सो, सुलतान ! पदमिनी जानी ॥
दीरघ चारि, चारि लघु सोई । सुभर चारि, चहुँ खीनौ होई ॥
औ ससि-बदन देखि सब मोहा । बाल मराल चलत गति सोहा ॥
खीर अहार न कर सुकुवाँरी । पान फूल के रहै अधारी ॥
सोरह करा सँपूरन औ सोरहौ सिंगार ।
अब ओहि भाँति कहत हौं जस बरनै संसार ॥4॥
प्रथम केस दीरघ मन मोहै । औ दीरघ अँगुरी कर सोहै ॥
दीरघ नैन तीख तहँ देखा । दीरघ गीउ, कंठ तिनि रेखा ॥
पुनि लघु दसन होहिं जनु हीरा । औ लघु कुच उत्तंग जँभीरा ॥
लघु लिलाट छूइज परगासू । औ नाभी लघु, चंदन बासू ॥
नासिक खीन खरग कै धारा । खीन लंक जनु केहरि हारा ॥
खीन पेट जानहुँ नहिं आँता । खीन अधर बिद्रुम-रँग-राता ॥
सुभर कपोल, देख मुख सोभा । सुभर नितंब देखि मन लोभा ॥
सुभर कलाई अति बनी, सुभर जंघ, गज चाल ।
सोरह सिंगार बरनि कै , करहिं देवता लाल ॥5॥
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(पद्मावती-नागमती-सती-खंड)
पदमावति पुनि पहिरि पटोरी । चली साथ पिउ के होइ जोरी ॥
सूरुज छपा, रैनि होइ गई । पूनो-ससि सो अमावस भई ॥
छोरे केस, मोति लर छूटीं । जानहुँ रैनि नखत सब टूटीं ॥
सेंदुर परा जो सीस अघारा । आगि लागि चह जग अँधियारा ॥
यही दिवस हौं चाहति, नाहा । चलौं साथ, पिउ ! देइ गलबाहाँ ॥
सारस पंखि न जियै निनारे । हौं तुम्ह बिनु का जिऔं, पियारे ॥
नेवछावरि कै तन छहरावौं । छार होउँ सँग, बहुरि न आवौं ॥
दीपक प्रीति पतँग जेउँ जनम निबाह करेउँ ।
नेवछावरि चहुँ पास होइ कंठ लागि जिउ देउँ ॥1॥
नागमती पदमावति रानी । दुवौ महा सत सती बखानी ॥
दुवौ सवति चढि खाट बईठीं । औ सिवलोक परा तिन्ह दीठी ॥
बैठौ कोइ राज औ पाटा । अंत सबै बैठे पुनि खाटा ॥
चंदन अगर काठ सर साजा । औ गति देइ चले लेइ राजा ॥
बाजन बाजहिं होइ अगूता । दुवौ कंत लेइ चाहहिं सूता ॥
एक जो बाजा भएउ बियाहू । अब दुसरे होइ ओर-निबाहू ॥
जियत जो जरै कंत के आसा । मुएँ रहसि बैठे एक पासा ॥
आजु सूर दिन अथवा, आजु रेनि ससि बूड ।
आजु नाचि जिउ दीजिय, आजु आगि हम्ह जूड ॥2॥
.सर रचि दान पुन्नि बहु कीन्हा । सात बार फिरि भाँवरि लीन्हा ॥
एक जो भाँवरि भईं बियाही । अब दुसरे होइ गोहन जाहीं ॥
जियत, कंत ! तुम हम्ह गर लाई । मुए कंठ नहिं छोडँहिं,साईं !
औ जो गाँठि, कंत ! तुम्ह जोरी । आदि अंत लहि जाइ न छोरी ।
यह जग काह जो अछहि न आथी । हम तुम, नाह ! दुहुँ जग साथी ॥
लेइ सर ऊपर खाट बिछाई । पौंढी दुवौ कंत गर लाई ॥
लागीं कंठ आगि देइ होरी । छार भईं जरि, अंग न मोरी ॥
रातीं पिउ के नेह गइँ, सरग भएउ रतनार ।
जो रे उवा , सो अथवा; रहा न कोइ संसार ॥3॥
वै सहगवन भईं जब जाई । बादसाह गड छेंका आई ॥
तौ लगि सो अवसर होइ बीता । भए अलोप राम औ सीता ॥
आइ साह जो सुना अखारा । होइगा राति दिवस उजियारा ॥
छार उठाइ लीन्ह एक मूठी । दीन्ह उडाइ, पिरथिमी झूठी ॥
सगरिउ कटक उठाई माटी । पुल बाँधा जहँ जहँ गढ-घाटी ॥
जौ लहि ऊपर छार न परै । तौ लहि यह तिस्ना नहिं मरै ॥
भा धावा, भइ जूझ असूझा । बादल आइ पँवरि पर जूझा ॥
जौहर भइ सब इस्तरी, पुरुष भए संग्राम ।
बादसाह गढ चूरा, चितउर भा इसलाम ॥4॥
(अनुवाद = ) जौहर हुई सब स्त्री , पुरुष हुए संग्राम (शाका) ।
बादशाह गढ चूरा (चूर कर दिया), चित्तौर हुआ इसलाम !
(लेकिन स्त्री-पुरुष सब मर गए तो इस्लाम कौन हुआ ?? – यह जायसी का व्यंग्य है अलाउद्दीन के विरुद्ध)
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अगले पोस्ट में मैं रानी पद्मावती के अस्तित्व और जौहर का ज्योतिषीय प्रमाण दूंगा | किन्तु वह प्रमाण राज-ज्योतिष की गोपनीय विधि पर आधारित है जिसका अब प्रयोग लोग भूल चुके हैं ।