Seen by डॉ. अश्विनी पाण्डेय at 10:38 AM

राम-सेतु एक बात जिस पर विचार होना चाहिए कि सेतु बाँधने के पहले समुद्र को सुखाने के लिए प्रभु राम ने जो अग्नि बाण का संधान किया था वह कहा गिरा *सन्घानेउ प्रभु बिसिख कराला -उठी उदधि उर अंतर ज्वाला – मकर उरग झश गन अकुलाने -जरत जंतु जलनिधि जब जाने- और बाण चढाते ही समुद्र में भयंकर ज्वालाए उठने लगी -समुद्री जीव जंतु जलने लगे तब समुद ने मानव रूप में आकर विनती की और नल नील से पुल बनवाने को कहा और धनुष पर चढे हये भयंकर अग्नि बाण का क्या हो -इसके बारे में प्रभु से प्रार्थना की — एँहि सर मम उत्तर तट वासी -हतहु नाथ नर खल अघ रासी* निवेदन किया की इस बाण से समुद्र के उत्तर तट वासी दुरात्मा और पापी मनुष्यों का नाश करे* सुनि कृपाल सागर मन पीरा तुरतहि हरी राम रन धीरा– देखि राम बल पौरुष भारी हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी * श्री राम ने ऐसा ही किया -उस अग्नि बाण को जैसा समुद्र ने कहा था -चला दिया और श्री राम के असीम बल पौरुष को देखकर समुद्र प्रसन्न हुआ–मेरे विचार से श्री राम धनुषकोटि पर थे और पास में अरब सागर और जिसके उत्तर में आज के अरब देश और अफ्रीका का उत्तरी हिस्सा होना चाहिए । लगता है उस समय वहा सारी मानव जाति को कष्ट पहुचाने वाले मनुष्य – रहते थे जिनका उस समय समूल नाश श्री राम के अग्नि बाण ने किया – बाल्मीक रामायण के अनुसार वहा सभी मनुष्य – जीव जंतु -पेड़ पौधे सब कुछ नष्ट हो गया और रेगिस्तान हो गया – पानी सूख गया ।तो क्या उस समय अरब देशो में असुर रहते थे जिनका समूल विनाश भगवान राम ने अग्नि बाण से किया और मृत सागर (डेड सी ) लाल सागर इसी भयानक त्रासदी के कारण बने है ? क्या मिश्र के पिरामिड श्री राम के काल के पूर्व के है जो नष्ट होने से बच गए ? निश्चित तो नही पर ऐसा हो सकता । सच क्या है इस पर विद्वानों को रिसर्च करना चाहिए। आप सभी की राय अपेक्षित है।