विषय – शीतकालीन स्नान मीमांसा

वैदिक काल से ही

भारतवर्ष में प्रातः कालीन स्नान नित्यकर्म का प्रमुख भाग है। हड़प्पा सभ्यता में भी प्रायः सभी गृहों में स्नानागार की समुचित व्यवस्था का उल्लेख मिलता है और इसके कई प्रमाणभी  प्राप्त हुए हैं।

चरक संहिता में प्रातःकालीन स्नानसे लाभ के विषय में विस्तृत वर्णन है यथा–

“स्नान से जठराग्नि तेज होती है।मन प्रसन्न होता है और आयु बढ़ती है। इससे उत्साह और बल बढ़ता है। शरीर से मलिनता,श्रम, स्वेद, तृषा ,दाह और ताप भी दूर हो जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि प्रातःकालीन स्नान आवश्यक है परन्तु इस समय भारतवर्ष में एक तो करोना काल चल रहा है, दूसरा ऋतु परिवर्तन हो रहा है। पीयूष बर्षिणी शरद पूर्णिमा बीत गई। हेमंत ऋतु का समागम हो गया। इसके बाद शिशिर ऋतु आएगी। इन दोनों ऋतुएँ में शीताधिक्य के कारण  प्रातःकालीन स्नान का अरुचिकर दुष्कर लगना स्वाभाविक ही है। पर हमें  हीन भावना से ग्रस्त होने की किंचित आवश्यकता नहीं है। युवा नवानुसंधानिस्थ विद्वानों के नव्यानुसंधान से प्रातःकालीन स्नान  विकल्प के रुप अनेक रोचक सुझाव प्राप्त हुए हैं उनमें से कुछ प्रमुख विकल्प इस प्रकार हैं —

इन विकल्पों का प्रयोग करके भी स्नान के पुण्यलाभ को अर्जित किया जा सकता है।

१ – कंकड़ी स्नान –

यह प्रातःकालीन स्नान का प्रमुख एवं सुगम विकल्प है।

इस स्नान में  केवल हाथ-मुँह धोकर पानी कुछ की बूंदों को अपने ऊपर छिड़कते हुए  ” ऊँ अपवित्रो पवित्रो वा ——-” मंत्र का उच्चारण करके स्नान के पुण्य को अर्जित किया जा सकता है।

२.  नल नमस्कार स्नान –

इसमें स्नानार्थी  श्रद्धा पूर्वक नल  स्पर्श करते हुए नमस्ते कर लें, यह भी स्नान  एक प्रकार का माना जायेगा।

३. जल स्मरण स्नान –

यह उच्च कोटि का स्नान है , इसको बिस्तर पर रजाई/कंबल के अन्दर रहते हुए शीतोष्ण जल से स्नान करने की स्मरण करने मात्र से स्नान का लाभ मिल जाता है।।

४.  स्पर्शानूभूति स्नान –

इस स्नान में किसी नहाये हुए मित्र या परिवार के सदस्य को छूकर

‘त्वं स्नानम् , मम् स्नानम्’

कहने से स्नान माना जायेगा।

शीतकाल को दृष्टिपथ में रखते हुए वैज्ञानिकों ने तीन प्रकार के अत्याधुनिक स्नान का आविष्कार किया है –

१. – अॉनलाईन स्नान-

कंप्यूटर पर गंगा के संगम का फोटो निकाल कर उस पर ३ बार माउस क्लिक करें और फेसबुक पर उसे Background Photo के रूप में लगाएं, इसे स्नान माना जायेगा।

२. दर्पण स्नान-

दर्पण में अपनी छवि को देखकर एक-एक कर तीन मग पानी शीशे पर फेंकें और हर बार “ओह्हहा” करें, यह भी स्नान ही होगा।

३. सांकेतिक स्नान- सूरज की ओर पीठ कर, अपनी छाया पर, लोटे से पानी की धार गिराएँ और जोर-जोर से “हर-हर गंगे” चिल्लाएँ तथा इस मंत्र का जाप करते रहें-  “गंगे गंगे त्रय योजनानाम् शतनयपि मुच्चते सर्व पापेभ्यो विष्णुलोकं सगच्छति।शरीरे जर्जरी भूत्वा व्याधि ग्रतो खलो अयं औषधं जान्ह्वी तोयं वैद्यौ नारायणो हरि:।”

यकीनन ताजगी महसूस होगी। यह अति उत्तम धार्मिक स्नान है।

उत्तम हो यदि इन सभी  चार प्राचीन और तीन आधुनिक स्नानों को सिद्ध करने हेतु निम्न शास्त्रोक्त मंत्र का जाप कर लें-

“गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।”

उपर्युक्त समस्त  स्नान विधियों की मौलिकता, सर्व स्वीकार्यता और वैज्ञानिकता को दृष्टि-पथ में रखते हुये देश के समस्त सनातन धर्मावलंबी धर्माचार्य/ धर्मानुरागी जन/ विद्वत-परिषद आदि ने सर्व सम्मति से इन्हें शास्त्र सम्मत स्नान घोषित कर दिया है।

विभिन्न स्रोतों से साभार संकलित