नियंत्रक ग्रह {ज्योतिष ज्ञान}




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नियंत्रक ग्रह का मतलब होता है नियंत्रण रखने वाला ग्रह कुंडली में ग्रह कोई ग्रह किसी अन्य ग्रह को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है या युति सम्बन्ध बनाकर युति वाले ग्रह से ज्यादा बली होता है तो ऐसा ग्रह जिस ग्रह को देखता है और जिस ग्रह के साथ युति सम्बन्ध बनाकर बली होता है उस ग्रह को अपने नियंत्रण में रखता है मतलब जो भी ग्रह जिस ग्रह के नियंत्रण में है वह उसी ग्रह के प्रभाव के अनुसार फल देता है जिस ग्रह के नियंत्रण में होता है। जैसे चंद्रमा पर राहु की दृष्टि हो और चंद्रमा की दृष्टि राहु पर न हो तो चंद्रमा पर राहु का नियंत्रण होगा चंद्रमा के फल राहु की स्थिति के प्रभाव के अनुसार भी होंगे साथ ही चंद्रमा पर राहु के साथ मंगल की भी दृष्टि हो तो चंद्रमा के फलो में मंगल का भी प्रभाव होगा मतलब अब चंद्रमा संबंधी शुभ अशुभ फल मंगल और राहु के नियंत्रण में रहेंगे क्योंकि मंगल और राहु ने चंद्रमा पर दृष्टि डालकर चंद्रमा को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया है कहने का मतलब है चंद्रमा को अपना गुलाम बना लिया है मंगल और राहु क्रूर और पापी ग्रह जिस कारण यह चंद्रमा पर इनकी दृष्टि से नियंत्रण होने से चंद्रमा के फल में क्रूरता और अशुभता आ जायेगी क्योंकि चंद्रमा का संचलन मंगल राहु जैसे क्रूर और पापी ग्रह कर रहे है ऐसी स्थिति में एक बात ध्यान रखने वाली है कि जो भी ग्रह जिस ग्रह का नितंत्रण कर रहे होते है वह ग्रह यदि शत्रु और एक दूसरे से विपरीत प्रवृत्ति के है तो फल में स्थिरता उस ग्रह के बनी रहती है जो ग्रह, दूसरे ग्रहो के नियंत्रण में है क्योंकि नियंत्रण करने वाले ग्रह स्वभाव से अलग है और स्वभाव से अलग होने के कारण दोनों अपने अपने अलग स्वभाव से उस ग्रह को चलाने का प्रयास करेंगे जो ग्रह नियंत्रण में है तो नियंत्रण वाले ग्रह के फल में इसी कारण अस्थिरता आ जायेगी।इसी तरह दूसरे उदारहण अनुसार, यदि सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो और सूर्य की दृष्टि गुरु पर न हो तो यहां सूर्य का नियंत्रक ग्रह गुरु होगा क्योंकि गुरु सूर्य को अपनी दृष्टि से प्रभावित करके उसको नितंत्रण में किया हुआ है जैसे मेष लग्न की कुंडली में गुरु 9वें भाव में हो और सूर्य लग्न में हो तो गुरु की 5वीं दृष्टि सूर्य पर होगी जिससे सूर्य गुरु के नियंत्रण में रहकर फल देगा क्योंकि सूर्य गुरु के नियंत्रण में है दृष्टि के प्रभाव से और सूर्य के प्रभाव में शुभता और फल शानदार होंगे क्योंकि गुरु ग्रह है और जब कोई ग्रह शुभ ग्रह गुरु के प्रभाव में आ जाता है तो वह विशेष शुभ फल देने वाला बन जाता है क्योंकि ऐसे ग्रह का नियंत्रक या संचालक ग्रह गुरु जैसा शुभ ग्रह होता है। इसी तरह जब दो या दो से ज्यादा ग्रहो का आपस में युति सम्बन्ध हों तब उस युति सम्बन्ध में जो ग्रह हर तरह से ज्यादा बली है वह ग्रह युति सम्बन्ध वाले ग्रहो को अपने प्रभाव में ले लेता है और उसकी स्थिति अनुसार वह ग्रह उसके प्रभाव को लेकर फल देते है जैसे सूर्य और शनि की युति सिंह राशि में लग्न में होने पर यहां सूर्य शनि से ज्यादा बली होगा क्योंकि सूर्य एक तो अपने घर(सिंह राशि) का है दूसरा शनि सूर्य के घर में होने से शत्रु घर( शत्रु राशि) में है साथ ही लग्न में शनि दिग्बल से हीन भी होता है ऐसी स्थिति में सूर्य शनि युति में शनि के कमजोर और सूर्य के बली होने से सूर्य शनि का नियंत्रक ग्रह होगा शनि सूर्य के नियंत्रण में रहकर फल देगा क्योंकि जो बली होता है वह कमजोर को अपने नियंत्रण में रखकर कार्य कराता ही वही स्थिति यहा ग्रहो की होती है।इस तरह से कुंडली में जो ग्रह किसी ग्रह के दृष्टि के प्रभाव या युति के प्रभाव से उस ग्रह के नियंत्रण में होता है वह उसी नियंत्रण करने वाले ग्रह के अनुसार फल देता है यदि नियंत्रण में होने वाला ग्रह बली है तो अपनी स्थिति, स्वभाव आदि के अनुसार भी फल देगा।इस तरह से ग्रहो के फल में यह बहुत महत्वपूर्ण बिंदु होता की कौन ग्रह किसके नियंत्रण में है या नही उसी के अनुसार फल ग्रहो के फलित होते है।
ज्योतिषाचार्य
डॉ. अश्विनी पाण्डेय
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