May be an image of 1 person               

एक संत ने एक द्वार पर दस्तक दी और आवाज लगाई ” भिक्षां देहि “। एक छोटी बच्ची बाहर आई और बोली, ‘‘बाबा, हम गरीब हैं, हमारे पास देने को कुछ नहीं है।’’
संत बोले, ‘‘बेटी, मना मत कर, अपने आंगन की धूल ही दे दे।’’ लड़की ने एक मुट्ठी धूल उठाई और भिक्षा पात्र में डाल दी। शिष्य ने पूछा, ‘‘गुरु जी, धूल भी कोई भिक्षा है? आपने धूल देने को क्यों कहा ?’’ संत बोले, ‘‘बेटे, अगर वह आज ना कह देती तो फिर कभी नहीं दे पाती। आज धूल दी तो क्या हुआ, देने का संस्कार तो पड़ गया। आज धूल दी है, उसमें देने की भावना तो जागी, कल समर्थवान होगी तो फल-फूल भी देगी।’’
जितनी छोटी कथा है निहितार्थ उतना ही विशाल| साथ में आग्रह भी …. दान करते समय “दान” हमेशा अपने परिवार के छोटे बच्चों के हाथों से दिलवाये जिससे उनमें देने की भावना बचपन से बने।