करपात्री जी{स्वामी श्री हरिहरानंद सरस्वती जी महाराज}
स्वतन्त्र भारत के प्रथम बंदी :- धर्मसम्राट श्री स्वामी करपात्री जी महाराज (१९०७ – १९८२) भारत के एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं चलते फिरते ग्रन्थालय थे। उनका मूल नाम हर नारायण ओझा था। वे हिन्दू दसनामी परम्परा के संन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम ” हरिहरानन्द सरस्वती” था किन्तु वे “करपात्री” नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। तत्कालीन कम्युनिस्ट नेताओं ने स्वामी जी के संदर्भ में कहा था की यदि आपके समान मेधावी व्यक्तित्व हमारे पास होता तो हम पूरे राष्ट्र को कम्युनिस्ट बना देते,पता नही हिन्दू आपकी मेधा,प्रज्ञा का लाभ क्यों नही उठा पा रहे -ध्यातव्य है की स्वामी जी की स्मृति इतनी तीक्ष्ण थी (जिसे photografhic memory कहतें हैं) की एक बार जिस ग्रन्थ,व्यक्ति को देख लिया उसका बराबर स्मरण रहता था,बीस वर्षों पश्चात भी किसी ग्रन्थ में कौन सी बात कहाँ है ये बताने में उन्हें समय नही लगता था,उनके असंख्य शिष्य उनकी इस विलक्षणता के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं,इसके विपरीत देश आजाद होने के उपरांत सर्वप्रथम स्वामी जी को ही जेल में बन्दी बनाया गया,भारत का दुर्भाग्य देखिये स्वतन्त्र भारत के प्रथम बन्दी एक निहत्थे,अकिंचन सन्यासी श्री स्वामी करपात्री जी महाराज ही थे।स्वामी जी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के विरोध में थे,भारत अखण्ड हो – यह नारा उन्ही का दिया है।
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