गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर और सृजन शक्ति
“माँ, बहन, बेटी या महबूब के साए से जुदा
एक लम्हा न हो, उम्मीद करता रहता हूँ
एक औरत है मेरी रूह में सदियों से दफ़न
हर सदा जिस की, मैं बस गीत करता रहता हूँ”
एशिया का पहला नोबेल जीतने पर रॉयटर्स के संवाददाता ने इंग्लैण्ड से फोन कर के गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर से पूछा, “आपको आपकी कविता के लिए नोबेल मिला है। आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं?” गुरुदेव ने जवाब दिया, “मैं कुछ नहीं लिखता। मेरे हृदय के अंदर एक विरहणी निवास करती है। वो रो देती है, और मैं उसका दुःख कागज़ पर उकेर देता हूँ, कविता हो जाती है।” ईश्वर ने सृजन करने का अधिकार अपने अलावा सिर्फ स्त्री को दिया है। जहाँ स्त्री नहीं है, वहाँ सर्जना सम्भव ही नहीं है। विश्व महिला दिवस पर विश्व सर्जना की अधिकारिणी, दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली हर स्त्री-शक्ति को हमारी ओर से प्रणाम !
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