सत्य ही ईश्वर है !
सत्य’ ईश्वर का ही स्वरुप है !
एक व्यक्ति यह सोचता है कि अपने जीवन के दिन प्रतिदिन के काम काज पूरे कर लेना ही मानवता है| परन्तु ये साधारण कार्य पूरे करना तो सांसारिक कर्तव्य पूरे करना होता है यह अध्यात्मिक कार्य नहीं है| कुछ घटनाओं को देखना, अपनी तरह से कुछ करना या कहना, ये सारे संसारी तथ्य हैं| अध्यात्मिक सत्य इनसे अलग रहता है| वह समय, स्थान और परिस्थिति से परे होता है और किसी व्यक्ति से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है|
सत्य रजस गुणों से प्रभावित नहीं होता है| यह सत्य निश्चय ही भगवान् है और बाकी सब कुछ इस सत्य में से ही प्रकट होता है|
सत्य से ही प्रकट होती है यह रचना और सत्य में जाकर ही मिलती है| क्या है? ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई स्थान सत्य न रहता हो जहाँ? जागो! देखो! समझो! इस परम्शाश्वत निर्मल सत्य को|
पंच महाभूतों की उत्पत्ति सत्य से हुई है| इस सत्य को न समझते हुए संसार में होने वाली सारी भौतिक बातों को हम सच मान लेते हैं| संसार के सच वे हैं जिन्हें हम अपनी इन्द्रियों के द्वारा देख सकते है हैं, सुन सकते हैं या सोच सकते हैं| ये सांसारिक सत्य ही हमारे सुख और दुःख का कारण होते हैं और ये समय के साथ बदलते रहते हैं| अध्यात्मिक सत्य तीनों कालों में समान रहता हैं| सम्पूर्ण सृष्टि की रचना का आधार यही सत्य है| सत्यम शब्द में तीन बातें हैं सत्य+य+अम जिनमें सत्य जीवात्मा या प्राण तत्व है, ‘य’ का अर्थ अन्न है और ‘अम’ होता है सूर्य| जीवन सिद्धांत से ही प्रत्येक जीव बनता है, जिसका आधार अन्न होता है, तथा सभी वनस्पति जगत और खाद्यान को सूर्य ही पोषण देता है, जिनसे जीव जगत को भोजन मिलता है| जीवन तत्व, अन्न तथा सूर्यदेव मिलकर ही सत्य की रचना करते हैं| अतएव ये तीनों ही ब्रह्म स्वरूप हैं| सत्य शब्द का क्रम बदल देने पर ‘यतस’ बनता है, जिनमें ‘य’ है यम नियम ‘त’ है तप और ‘स’ है वह (ईश्वर) जो सत्य स्वरूप है, इसलिए जब हम यम, नियम का पालन करते हुए इन्द्रियों को संयम करते हैं, तब हमें ‘स=वह’ उस भगवान के दर्शन होते हैं हो परम सत्य है| अतः कर्मेंन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों को वश में करके तप करो| तप करने से क्या तात्पर्य है? पदमासन या शीर्षासन करने मात्र से तप नहीं हो जाता है| तप होता है त्रिकारण शुद्धि अर्थात अपने मन, वचन और कर्म को निर्मल करना| अच्छा सोचना, अच्छा बोलना और अच्छा काम करना ही त्रिकारण शुद्धि कहलाती है| यम और नियम के साथ साथ त्रिकारण शुद्धि होने पर ही ईश्वर से साक्षात्कार होता है| सत्यं ज्ञानं अनंतम ब्रह्मा अर्थात ब्रह्मन सत्य है, ज्ञान है और अंत रहित है| सत्य ही ज्ञान है, ज्ञान अनंतता है और ईश्वर अनन्त है| ब्राह्मन से विस्तार और अनन्त को बोध होता है| अतएव सत्य ही ईश्वर का सच्चा स्वरुप है| परन्तु आज का मानव संसार के यथार्त को ही सत्य समझ लेता है| वह अध्यात्मिक सच को भूल जाता है| अज्ञान के मार्ग पर चल पड़ता है और ज्ञान के प्रकाश को नहीं देख पाता हैl

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