राष्ट्र की पवित्रता
पुरातन काल में मैंने अपने पूज्यपाद गुरुदेव को पूछा था तो आज राम के काल की मेरे पूज्यपाद चर्चा कर रहे थे। जब मुझे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव राम के काल में देखो, गृहों में प्रवेश होते या राष्ट्र में प्रवेश होते, तो भगवान राम के यहाँ घोषणा हो गई थी कि प्रत्येक गृह में वेद ध्वनि होनी चाहिए। प्रत्येक गृह में जब वेद ध्वनि होगी और देखो, वेद की सुगंधि और साकल्य की सुगंधि जब दोनो होगी तो मेरा राष्ट्र पवित्र बनेगा। भगवान राम प्रातःकालीन याग करते थे और समाज ने उसको क्रिया रूप दिया। जिससे अयोध्या का राष्ट्र पवित्रता में परिणत होता रहा।
आज के समाज ने उन महापुरुषों के, उन राष्ट्रों की प्रतिभा को भी दूषित किया और यागों को भी दूषित किया। महाभारत के काल में यागों में जो दूषितपन आया है याग के भ्रष्ट होने पर ही नाना प्रकार की सम्प्रदायों का चलन हुआ है। यदि अच्छा, बुद्धिमान ब्राह्मण समाज उसको अपनाता तो नाना प्रकार का रुढ़िवाद नहीं बनता, यह अज्ञानता समाज में नहीं आती जो अज्ञानता आज मुझे दृष्टिपात आ रही। आज जो भी सम्प्रदायवादी बनता है वही वाममार्गियों के अंगों को अपना लेता है। महात्मा बुद्ध ने यह कहा कि मैं अहिंसा परमो धर्मी हूँ परन्तु उनके मानने वाले भी वाममार्ग के पथिक बने। इस प्रकार हम इस काल की चर्चा अपने पूज्यपाद गुरुदेव को परिचय रूप में देना प्रारम्भ करते हैं।
याग में विकृति
तो यज्ञशाला में भी जब याग करने लगे तो याग की दो प्रतिक्रिया बनी, याग की दो वेदियाँ बनी, एक याग की वह वेदी बनी जिसमें अग्न्याधान होता है और उस अग्न्याधान में यहाँ ब्राह्मण समाज ने, स्वार्थी प्राणियों ने वाममार्गियों ने उसमें देखो, मांस की आहुति को देना प्रारम्भ किया, हिंसा का प्रारम्भ किया। अपने रसास्वादन के लिए और अपनी निष्क्रियता के लिए मानव ने अपने में देखो, याग को भ्रष्ट करना प्रारम्भ किया। उसी आधार पर एक वेदी ऐसी बनाई गई जहाँ अहिंसा परमो धर्म को परम्परागतों से ऋषि मुनियों ने माना। महाभारतकाल के पश्चात अज्ञानतावश उन्होंने एक वेदी का ओर निर्माण किया। जिस वेदी में देवताओं का प्रथम पूजन हो जाता है, उस में सूर्य का पूजन है, उसमें वायु का पूजन है, मरुतगणों का पूजन है, भिन्न-भिन्न जैसे मार्जन और तर्पण है वह भी उसी के माध्यम से व्रत हो जाता है।
परन्तु देखो, यह दो वेदी किसलिए निर्माणित हुई? यह वाममार्ग के काल में हुई क्योंकि एक वेदी अहिंसा परमोधर्म की है और एक वेदी में हिंसा का प्रारम्भ हुआ। याग में हिंसा का चलन हुआ। एक वेदी में समर्पियामि कह करके उसको शान्त कर देते हैं। देवताओं का पूजन करने के पश्चात समर्पियामि हो गया। परन्तु वह जो अग्न्याधान है उसमें देखो, गौमेघ याग करने लगे। तो गौ के मांस की आहुति देना प्रारम्भ किया, यदि उसमें अश्वमेध याग करने लगे तो घोड़े की आहुति का देना प्रारम्भ किया। उसमें नरमेघयाग करने लगे तो नरों की आहुति प्रदान करने लगे। वाजपेयी याग करने लगे तो बैल की बलि प्रदान करने लगे। परन्तु देखो, संसार ने जाना नहीं याग के अनूठे रहस्यों को।
महाभारत काल के पश्चात अज्ञानता
देखो, आधुनिक काल में क्या, महाभारत के काल के पश्चात अज्ञानता का प्रादुर्भाव हुआ मैंने अपने पूज्यपाद गुरुदेव को यह कहा कि हे भगवन्! यदि इस याग का तिरस्कार इस समाज में नहीं होता, याग के कर्मकांड को यह समाज अपने से दूरी नहीं करता, तो यह नाना प्रकार का जो यह सम्प्रदाय है, आज कोई मुहम्मद के मानने वाला है, कोई ईसा के मानने वाला है, कोई बौद्ध के मानने वाला है, कोई जैन सम्प्रदाय में परिणत हो गया, नाना प्रकार के जो सम्प्रदाय हैं, कोई नानक सम्प्रदायवादी बन गया, परन्तु यह सम्प्रदाय उसी काल में बने हैं जब यागों का तिरस्कार हुआ और मानव अपने कर्त्तव्य को शान्त कर गया। कर्त्तव्य की विहीनता में ही नाना प्रकार की अनास्था हो करके यागों के ऊपर देखो, मानव समाज ने कुठाराघात किया। देखो, उसी कुठाराघात का परिणाम यह हुआ कि यहाँ नाना प्रकार के सम्प्रदाय बने। आध्यात्मिकवाद में नहीं, सम्प्रदायवाद की केवल राष्ट्र तक सीमा रहती है। राष्ट्र को अपनाया जाए, एक दूसरे के प्राणों को नष्ट किया जाएँ, यहाँ तक सम्प्रदायओं की सीमाबद्धता का परिणाम यह कि देखो, धर्म के नाम पर एक प्राणी दूसरे प्राणी का भक्षक बन रहा है, प्राणी, प्राणी को नष्ट करना चाहता है। उसके मूल में क्या है? उसके मूल में देखो, राष्ट्र है। यदि राष्ट्र अपने को ऊँचा बना ले या राष्ट्र इस यज्ञपद्धति को अपना ले, तो यह राष्ट्र भी पवित्र बनेगा, यह राष्ट्र पवित्र बन जाए तो समाज में एक महानता आती चली जाएगी क्योंकि वैदिक साहित्य को जब तक राष्ट्र नहीं अपनाता, ज्ञान को विज्ञान को वह अपने में सार्थकता में प्राप्त नहीं कर सकता।
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