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💐💐💐भावुकता और स्त्री💐💐💐
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स्त्री का सौंदर्य उसके भाव के कारण ही चमकता है और भावुकता से ही सौंदर्य दूध बन कर बहनें लगता है। यदि न हो तो बच्चे के‌ लिए दूध उतरे ही नहीं। भावुकता इसलिए उसमें ज्यादा होती है वह जनन करना चाहती है, और स्व जनित को पालती भी है इसलिए इसे जननी‌ कहा जाता है। जो जनन करती है वह प्रसूति पीड़ा को जानती है। सन्तान हेतु स्त्री की भावुकता के कारण ही पार्वती जी के हृदय में पुत्र कार्तिकेय‌ को गोद में उठाते ही आनंदामृत की बाढ़ आ गई ‌और स्तनों से दूध की धारा निकल पड़ी……
निसर्गवात्सल्यरसौघसिक्ता सान्द्रप्रमोदमृतपूरपूणाऀ ।
तमेकपुत्रं जगदेकमाताऽभ्युत्साडिग्नं प्रस्रविणी बभूव ।।
स्त्री में पुरुष की अपेक्षा आशय ज्यादा होते हैं। आयुर्वेद इसका प्रमाण है—स्तनाशय और गर्भाशय। स्त्री में नि:र्सग रुप से भाव वृष्टि होती रहती है जो पुरुष में सुप्त पड़ी रहती है , और भावुकता स्त्री की आन्तरिक मजबूती का तथा अधिक अवयव वाली होने का प्रमाण है।
स्त्री को अबला भावुक और लिजालिजा समझने की भूल तथा गलत अवधारणा को जन्म देने का काम पश्चिम ने ही किया । पहले ‌तो यह कहा गया कि स्त्री आत्म रहित है, वह पुरुष की पसली से उत्पन्न हुई है, बाद ‌में कहा गया कि यह बकरी की तरह दिन भर भोजन करती रहती है। यह “किरमेर” है। विश्व की कोई भी सभ्यता हो उसने स्त्री को मूल शक्ति मानने से इंकार किया। दूसरी ‌ओर भारत ने स्त्री‌ को सीधे महाशक्ति और विद्या, महाविद्या मानकर उसे मोक्ष साधना हेतु पूजित किया।
केकड़ी जानती है कि उसके ‌बच्चे जब भी जन्म लेंगे उसका पेट जायेगा और वह मर जायेगी, इसके बाद भी
वह सृष्टि करती है। एक भावुक ‌निणऀय लेती है और गभऀ धारण कर आत्म उत्सर्ग कर देती है, उसके बच्चे दौड़ पड़ते हैं, तब तक वह हसीन और हमेशा के लिए सो जाती है। यदि यह भावुकता है तो भली है सृष्टि चल रही है । कुमारसम्भव महाकाव्य में पार्वती ‌जब कार्तिकेय को अपने गोद में उठाती तो पुत्र की धात्री होने के कारण तीनों लोकों की माताओं में पूज्या बनी —–
स्वमड्कमारोप्य सुधानिधानमिवात्मनों नन्दनमिन्दुवकत्रा तमेकमेषा जगदेकवीर वभूव पूज्या धुरि पुत्रिणीनाम् ।।
प्रेम पथ पर चलने वाला पुरुष हो या स्त्री भावुकता ही उसको उस दिशा ‌में ले जाती है पर स्त्री में भावुकता ज्यादा होती है।उसका कारण वह जानती है कि वह अधूरी है,उसे अपना हिस्सा खोजना है इस खोज में वह‌ इतनी तल्लीन होती है जिससे उसका आधा मिल जाता है और भावुकता एक ऐसी तरलता है जो त्रिलोक में अपने हिस्से को ढूंढ लेती है और पूर्ण हो जाती ‌है।
स्त्री के हृदय के आशय बढ़ते है इस कारण ‌वह अपने भावों को पुरुष की अपेक्षा ज्यादा ‌बढ़ा लेती है पुरुष का गर्व बढ़ता है जबकि स्त्री भावुक बन कर गभऀ ढ़ोती है पर करता मजाक है जो कोई उसकी सन्तान को हानि पहुंचा दे तब वह भाव नही भयंकारिणी हो जाती है।
स्त्री और पुरुष में एक सृष्टिगत अन्तर है।स्त्रीभाव काम (रस)के कारण पुरुष को ढूंढती है……..
अलंविवादेन‌ यथा श्रुतस्त्वया तथाविधस्तावदशेमस्तु स: ।
ममात्र भावैकरसं मन:स्थित: न कामवृत्तिवऀचनीयमीक्षते ।।
जबकि पुरुष कामभाव के कारण उसे ढूंढता है।इसको गीता में कहा— धर्मकाम । भाव की स्थिरता के बिना अधर्म काम और ‌भाव की स्थिरता से धर्मकाम उत्पत्ति होती है। अतः सन्तान हेतु स्त्री भावुकता सृष्टि समारम्भ की प्रक्रियां है । इसलिए स्त्री में भावुकता वरदान होती है हम सभी को इसकी भावुकता को हृदय से स्वीकार करना चाहिए

…………. धन्यवाद…….@ साभार

डॉ कंचन दुबेजी