May be an image of text that says 'Aries Pisces 3 2 मं 1राहु 12 A 11 4 10 5 7 6 ग्रहों की उच्च नीच स्वराशि दृष्टि का 8 Kanya Virgo Tula Libra प्रभाव'                                   

ग्रहों की उच्च-नीच स्वराशि दृष्टि का प्रभाव
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नवग्रहों में सभी ग्रहों की अपनी अपनी दृष्टियां होती है।
पूर्ण दृष्टि, एक चरण दृष्टि, दो चरण दृष्टि और तीन चरण दृष्टियां होती है। इसमें ग्रहों की उच्च- नीच, स्वराशि पूर्ण दृष्टि के बारे में लिख रहा हूँ।
सूर्य से लेकर केतु तक 9 ग्रह कुंडली में जिस स्थान में बैठे होते है वहाँ से 7वे स्थान को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखते है। इसके आलावा मंगल गुरु शनि राहु केतु की 7वीं दृष्टि के आलावा अन्य दो दो और पूर्ण दृष्टि होती है।
मंगल की 7वीं पूर्ण दृष्टि के आलावा 4वीं और 8वीं पूर्ण दृष्टि होती है।
मंगल जिस भी स्थान में बैठेगा कुंडली के उस स्थान से 7वे स्थान के आलावा 4वे और 8वे स्थान को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
इसी तरह गुरु राहु केतु की 7वीं पूर्ण दृष्टि के आलावा 5वीं और 9वीं पूर्ण दृष्टि होती है।
गुरु राहु केतु कुंडली के जिस स्थान में बैठेंगे उस स्थान से 7वे भाव के आलावा 5वे और 9वे भाव को भी अपनी पूर्ण दृष्टि से देखनते।
इसी तरह शनि की भी 7वीं पूर्ण दृष्टि के अतिरिक्त 3वीं और 10वीं पूर्ण दृष्टि होती है।
शनि कुंडली के जिस भी स्थान में बैठेगा वहाँ से 3वे, 7वे और 10वें भाव को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
इस तरह यह ग्रहो की दृष्टियां होती है। उच्च-नीच, स्वराशि दृष्टि के बारे में देखे तो जब किसी भी ग्रह की दृष्टि कुंडली के जिस भाव पर पड़ रही हो और वहाँ उस ग्रह की नीच राशि हो तब उसे ग्रह की नीच दृष्टि कहते है और उच्च दृष्टि हो तो उसे उच्च दृष्टि कहेंगे और उस ग्रह की अपनी राशि हो(जिस राशि का वह ग्रह स्वामी हो) तो उस ग्रह की उस दृष्टि को स्वराशि या स्वग्रही या स्वक्षेत्री दृष्टि कहते है।
गुरु मंगल शनि राहु केतु के आलावा सूर्य चंद्र बुध शुक्र अपनी उच्च राशि पर में होने पर ही अपनी नीच राशि को देख सकते है क्योंकि कोई भी ग्रह जिस राशि पर उच्च होता है ठीक क्रम से उससे सातवीं राशि पर नीच हो जाता है।
गुरु मंगल शनि राहु केतु अन्य राशि पर होने से भी अपनी उच्च नीच स्वराशि को देख सकते है क्योंकि इनकी 7वीं दृष्टि के आलावा दो दो अन्य पूर्ण दृष्टियां और भी होती है।ग्रह जब अपनी उच्च राशि को देखता है तो उससे सम्बंधित भाव के फल बलवान हो जाते है। सूर्य चंद्र बुध शुक्र की उच्च दृष्टि जब ही काम करेगी जब इन चारो ग्रहो का नीचभंग हो चूका हो क्योंकि यह चारो ग्रह नीच के होने पर ही अपनी उच्च राशि को देख सकते है।
जब इनका नीचभंग होगा तब इनकी दृष्टि का बल और शुभता बढेगी तभी इनकी उच्च दृष्टि का प्रभाव होगा।इसके आलावा जिस भाव पर ग्रह की नीच दृष्टि होती है उस भाव के फलो में असंतुलन बना रहता है जिस भाव पर ग्रह की नीच दृष्टि हो नीच दृष्टि भाव पर जो ग्रह उस नीच राशि में उच्च होता है उस ग्रह की उच्च दृष्टि हो तब ऐसे ग्रह की नीच दृष्टि भंग हो जाती है जिस तरह उच्च ग्रह से नीच ग्रह का नीचभंग होता है ऐसी स्थिति में उस भाव संबंधी फलों में संतुलन बना रहता है।इसके आलावा जिस भाव में ग्रह की अपनी राशि होती है जिसका वह ग्रह स्वामी होता है तब ऐसे ग्रह की खुद ही अपनी राशि पर दृष्टि होने के कारण उस भाव के फलों की वृद्धि होगी जिस भाव पर ग्रह की स्वराशि दृष्टि है।किस ग्रह की दृष्टि कैसी है। यह देखना फल में संतुलन-असंतुलन बताता है।