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कुछ दिन पूर्व हमने शिवपुराण और महाभारतके आधार पर वर्णों में वर्ण की विस्तार से चर्चा किया था। उदाहरण के लिये सात्विक शूद्र को कर्मणा ब्राह्मण नहीं कह सकते , उसे ब्राह्मणकोटि का अर्थात् उच्च श्रेणीका शूद्र कहेंगे। इसी प्रकार तामस ब्राह्मण को शूद्र नहीं अपितु शूद्रकोटि का ब्राह्मण अर्थात् निम्नकोटिका ब्राह्मण कहेंगे। स्मृतियों पर आधारित अधोलिखित वर्गीकरण भी उस प्रवचन में जोड़ लेना चाहिये:-

।।ब्राह्मण के दश प्रकार ।।

ब्राह्मण वर्ण का निर्धारण जन्मना ही होता है। “जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः” – अत्रि स्मृति १३८।

ब्राह्मण वंश में जन्म लेने वाला जन्म से ही ब्राह्मण है।

महर्षि अत्रि ने ब्राह्मणो का कर्म अनुसार विभाग किया है।

देवो मुनिर्द्विजो राजा वैश्यः शूद्रो निषादकः ॥

पशुम्लेच्छोपि चंडालो विप्रा दशविधाः स्मृताः॥ – अत्रि स्मृति,३७१

(देव, मुनि, द्विज, राजा, वैश्य, शूद्र, निषाद, पशु, म्लेच्छ, चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं )

१.देव ब्राह्मण- ब्राह्मणोचित श्रौत और स्मार्त कर्म वैदिक आचरण करने वाला हो।

२. मुनि ब्राह्मण – शाक पत्ते फल आहार कर वन में रहने वाला

३. द्विज ब्राह्मण – जो वेदांत,सांख्य,योग आदि अध्ययन व ज्ञान पिपासु हो।

४. क्षत्रिय ब्राह्मण – जो युद्ध कुशल हो।

५. वैश्य ब्राह्मण – जो व्यवसाय गोपालन आदि करता हो।

६. जो शुद्र ब्राह्मण – लवण, लाख,घी, दूध,मांस,मदिरा,आदि बेचता हो।

७. निषाद ब्राह्मण – जो चोर, तस्कर, मांसाहारी,व्यसनी हो

८.  पशु ब्राह्मण – जो शास्त्रविहीनहोते हुये भी मिथ्याभिमानी हो, व्यर्थ गाल बजाता हो ।

९. म्लेच्छ ब्राह्मण – बावड़ी,कूप,बाग,तालाब को बंद करने वाला।

१०. चांडाल ब्राह्मण – अकर्मी, क्रियाहीन, कर्मसंकर,वर्णसंकर

(अत्रिस्मृति,  ३७२- ३८१)