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*गायत्री महामंत्र के २४ अक्षरों की पूर्णता*
अनेक लोग छन्द शास्त्र और मन्त्र शास्त्र गुरु चरणों मे बिना बैठे पुस्तको से प्राप्त करते हैं । इसलिए भ्रम उत्पन्न होना सहज है।
इन्हे गायत्री छन्द कितने प्रकार
के हैं –इसके ज्ञान हेतु “ हलायुध कि टीका के साथ पिन्गलाचार्य प्रणीत “ छन्दः शास्त्रम् ” देखना पडेगा |
“गायत्री के 24 अक्षरों के विषय में पिंगलाचार्य और हलायुध का प्रमाण”
तृतीय अध्याय में “ पिगालाचार्य जी गायत्री के अक्षरों की २४ संख्या कैसे पूर्ण होगी ?
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए लिखते हैं –
“ इयादि पूर्णार्थः –३/२ ,
जहाँ गायत्री आदि छन्दों के अक्षरों की.संख्या पूर्ण न हो रही हो वहां इय ,उव आदि जोड़ लेना
चाहिए — *“ यत्र गायत्र्यादिच्छन्दसि पादस्याक्षर संख्या न पूर्यते , तत्रेयादिभिः पूरयितव्याः “*
ऐसा कहकर श्रीहलायुध गायत्री मन्त्र के अक्षरो कि पूर्ति में प्रमाण प्रस्तुत करते है —-
तथा –“ तत्सवितुर्वरेणियम् “ (ऋ.सं .३/४/१०/५,
अर्थात् “ वरेण्यं “ की जगह “वरेणियं “ जपना चाहिए |
और इसमें पुराण वाक्य भी प्रमाण है —
“ पाठ काले वरेण्यं स्यात् जपकाले वरेणियम् “ |
और परम्परा से गायत्री मन्त्र से
दीक्षित व्यक्ति जो साधकों के संपर्क मे रह चुके है वह गायत्री मन्त्र भिन्न पाद करके ऐसे ही जपते भी है |