भूगोल
चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नक्षत्रमण्डलकी शैलीमें भूगोलका नामान्तर भूमण्डल है। खगोलमें चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नक्षत्रमण्डलका अन्तर्भाव है। प्रचलित भाषामें मण्डलका नामान्तर घेरा है। आत्माकी अपेक्षा बीजात्मक अव्यक्त, अव्यक्तकी अपेक्षा आकाश, आकाशकी अपेक्षा वायु, वायुकी अपेक्षा जल तथा जलकी अपेक्षा भूमि सन्निकट सविशेष है। निर्विशेषताकी अवधि आत्मा चेतन होनेके कारण शेषी है। अन्य सब शेष हैं। आत्मा सनातन अव्यक्त है। उसकी शक्ति अव्यक्तका नामान्तर प्रकृति है। प्रकृति बीजात्मिका है। पञ्च ज्ञानेन्द्रियोंके द्वारा ग्राह्य शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्धके आश्रय क्रमश: आकाश, वायु, तेज, जल, भूमि (पृथिवी) – पञ्च भूत हैं। अव्यक्त बीजशक्ति और आत्मा शक्तिसमाश्रय सिद्ध है। कारणके गुण कार्यमें अनुगत होते हैं। इस दृष्टिसे पृथिवी शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध – संज्ञक पञ्च गुणसम्पन्न है। उसके कार्य पर्वत तथा वृक्षादि अतिरिक्त गुणसम्पन्न न होनेके कारण पृथिवीके तारतम्यज सङ्घात हैं। विशेषताकी अवधि पृथिवी चरम तत्त्वान्तर परिणाम है। इस प्रकार तत्त्वमीमांसाकी दृष्टिसे आरोहक्रमसे पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, अव्यक्त और आत्मा कुल सात तत्त्व सिद्ध हैं। गन्धवती पृथिवीमें रस, रूप, स्पर्श और शब्द शेष चार गुणोंकी भी प्रतिष्ठा है। प्रकृतिका चरम कार्य होनेके कारण पृथिवी फलरूपा है। इसमें कठिनता तथा धारकता स्वभावसिद्ध है। इसमें द्रवता तथा पिण्डीकरणता जलसे प्राप्त है। इसमें उष्णता तथा प्रकाशनता अग्निसिद्ध है। इसमें सञ्चरणशीलता तथा व्यूहनता अर्थात् सञ्चयशीलता वायुसिद्ध है। इसमें सुषिरता तथा अवकाशप्रदता आकाशसिद्ध है। पृथिवी पित्तल (पीत) तथा कृष्णवर्णा और चतुष्कोण वज्रोपम है। जल अर्धचन्द्राकार रजत (चाँदी) – सदृश श्वेत है। तेज ज्वालासदृश सिन्दूरवर्ण है। वायु वेदिकाकार है। आकाश अवकाशप्रद है। भूमिमें जलादिका सन्निवेश होनेके कारण पर्यावरण भूगोलसे सम्बद्ध है। तद्वत् चतुष्कोण तथा कृष्णवर्णादिके कारण मानचित्रकी संरचना भी भूगोलसे सम्बद्ध है। वन, पर्वत, खनिजद्रव्य, नद, निर्झर तथा ज्वालामुखीका स्रोत भूमि है। इतना ही नहीं ; चतुर्दशभुवनात्मक ब्रह्माण्डमें सन्निहित समस्त स्थावर तथा जङ्गम प्राणियोंके अन्नका उद्गमस्थान भी भूमि ही सिद्ध है। पोषण और आह्लाद प्रदान करनेवाली सामग्री अन्न है। पञ्च भूतात्मिका तथा पञ्चविषयात्मिका भूमि वेद, अमृत, सौन्दर्य, सिद्धि , नृत्य तथा यवादि , फलादि अन्नप्रदा सिद्ध है। धेनुरूपा भूदेवी विविध विद्या तथा कलाका उद्गम स्थान है। जगद्गुरु निश्चलानंद जी
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