ब्रह्मकमल …….
ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल मां नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं।कहा जाता है कि ज्यादातर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है।
ब्रह्मकमल को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है। आम तौर पर फूलों को भगवान पर चढ़ाया जाता है, लेकिन ब्रह्मकमल ही एक मात्र ऐसा फूल है जिसकी पूजा की जाती है।
ब्रह्म कमल ऊंचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। ब्रह्मकमल, कमल की अन्य प्रजातियों के विपरीत पानी में नहीं बल्कि धरती पर उगता और खिलता है। सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय की पहाड़ी ढलानों या 3000-5000 मीटर की ऊंचाई में पाया जाता है। इसकी सुंदरता तथा दैवीय गुणों से प्रभावित हो कर ब्रह्मकमल को उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है।
वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनमें से 50 से अधिक प्रजातियां हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। उत्तराखंड में यह विशेष तौर पर पिंडारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है।
माना जाता है कि ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल खिलता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है।
इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था!! इस फूल के पौधे मे सितंबर-अक्तूबर के समय में फल बनने लगते हैं।