जो अपने सारे दुर्भाग्य व अवरोध से परे अपने लक्ष्य तक पहुंचने में समर्थ होता है

              अवन्ध्यकोपस्य निहन्तुरापदां भवन्ति वश्याः स्वयं एव देहिनः। अमर्षशून्येन जनस्य जन्तुना न जातहार्देन न विद्विषादरः।।(किरातार्जुनीयं 1/33) इस जगत में लोग उसी की अधीनता स्वीकार करते हैं, जिसका क्रोध कभी व्यर्थ नही जाता है और जो अपने सारे दुर्भाग्य व...

स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान सर्वत्र पूजते

                        काशी विद्वत् परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष , अभिनव पाणिनि स्वरूप, मम सदृश अनेकशः अकिंचन छात्रों के कृपामूर्ति, व्याकरण सहित, न्याय, वेदांत, मीमांसा आदि शास्त्रों के प्रति पूर्ण समर्पित, अध्यापन एवं शास्त्र परिचर्चा के माध्यम से अहर्निश माँ शारदे...

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की महादशा के अनुसार फल

            ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की महादशा के अनुसार फल जन्म कुंडली से हम यह जानकारी करते है की कोनसे ग्रह की महादशा समस्या पैदा कर रही तो उस ग्रह का उपाय करना चाहिए, अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ग्रहों की महादशा का उपाय करना चाहिए, ग्रह हमारे अनुकूल है या...

स्वाभिमान का मतलब अपनी बात पर अड़े रहना नहीं अपितु सत्य का साथ ना छोड़ना है।

                    स्वाभिमान का मतलब अपनी बात पर अड़े रहना नहीं अपितु सत्य का साथ ना छोड़ना है। दूसरों को नीचा दिखाते हुए अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रयास करना यह स्वाभिमानी का लक्षण नहीं अपितु दूसरों की बात का यथायोग्य सम्मान देते हुए किसी भी दबाब में ना आकर...

राम राज्य

राम राज्य की संकल्पना स्वयं में समावेशन ,समरसता, समता, स्वतन्त्रता,मर्यादा, उन्नति आदि को समेटे हुए है। वंचित एवं दिव्यांग जनों के प्रति ईर्ष्या,द्वेष, प्रत्येक प्रकार का विभेद, उपेक्षा, उत्पीड़न करने वालों का कृत्य निश्चित रूप से “रावण” तुल्य कृत्य है जो...

नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा।

नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा। कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्ति स्तत्र सुदुर्लभा।। इस पृथ्वी पर मनुष्य योनि दुर्लभ है, मनुष्य में भी विद्या अत्यधिक दुर्लभ है, विद्या के साथ काव्य शक्ति का दुर्लभ होना और उससे भी दुर्लभ इन सभी कार्यों को करने की शक्ति का नितांत...