सव्यसाची अर्जुन : एक प्रसंग

                          तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्। मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।गी. 11.33।। प्रथम अर्थ – इसलिये तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो तथा शत्रुओंको जीतकर धनधान्यसे...

रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है ?

                                    रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है ? शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण...

वैदिक साहित्य में धर्म की महिमा

                        वैदिक साहित्य में धर्म की बहुत महिमा बताई गई है।मनु महाराज ने लिखा है― नामुत्र हि सहायार्थं पितामाता च तिष्ठतः । न पुत्रदारं न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति केवलः ।। ―(मनु० ४/२३९) परलोक में माता, पिता, पुत्र, पत्नि और गोती (एक ही वंश का) मनुष्य की कोई...

धात्री धराधरसुते न जगद् बिभर्ति आधारशक्तिरखिलं तव वै बिभर्ति ।

                                            धात्री धराधरसुते न जगद् बिभर्ति आधारशक्तिरखिलं तव वै बिभर्ति । सूर्योऽपि भाति वरदे प्रभया युतस्ते त्वं सर्वमेतदखिलं विरजा विभासि ।। विद्या त्वमेव ननु बुद्धिमतां नराणां शक्तिस्त्वमेव किल शक्तिमतां सदैव। त्वं...

श्रीमद्भागवत महापुराण, महात्म्य वर्णन, विप्रमोक्ष

                देहेऽस्थिमांसरुधिरेऽभिमतिं त्यज त्वं जाया सुतादिषु सदा ममतां विमुञ्च। पश्यानिशं जगदिदं क्षणभंगनिष्ठं, वैराग्य राग रसिको भव भक्ति निष्ठः।।७९।। धर्मं भजस्व सततं त्यज लोकधर्मान्, सेवस्व साधु पुरुषां जहि कामतृष्णाम्। अन्यस्यदोषगुण चिन्तनमाशु मुक्त्वा, सेवा...

अग्नीषोमात्मकं जगत

                                                          “ अग्नीषोमात्मकं जगत “ के अनुसार संसार अग्नि और सोम रूप है ! अग्नि ही सूर्य रूप में व्याप्त होता है और सोम चन्द्रमा के रूप में ! स्रष्टि में दोनों की अनिवार्य आवश्यकता है ! आध्यात्मिक भाषा में शिव – शक्ति...