धात्री धराधरसुते न जगद् बिभर्ति
आधारशक्तिरखिलं तव वै बिभर्ति ।
सूर्योऽपि भाति वरदे प्रभया युतस्ते
त्वं सर्वमेतदखिलं विरजा विभासि ।।
विद्या त्वमेव ननु बुद्धिमतां नराणां
शक्तिस्त्वमेव किल शक्तिमतां सदैव।
त्वं कीर्तिकान्तिकमलामलतुष्टिरूपा
मुक्तिप्रदा विरतिरेव मनुष्यलोके ।।
(श्रीमद्देवीभागवत,३/४/४१,४४)
अर्थ:-
हे गिरिजे! यह पृथ्वी इस जगत् को धारण नहीं करती है अपितु आपकी आधारशक्ति ही इस समस्त जगत को धारण करती है। हे वरदे! भगवान् सूर्य भी आपके आलोक से युक्त होकर प्रकाशमान हैं।इस प्रकार आप विरजारूप से इस सम्पूर्ण जगत् के रूप में सुशोभित हो रही हैं।
आप निश्चय ही सदा से बुद्धिमान पुरुषों की विद्या तथा शक्तिशाली पुरुषों की शक्ति हैं।आप इस मनुष्य-लोक में कीर्ति, कान्ति,कमला, निर्मला तथा तुष्टिस्वरूपा हैं तथा प्राणियों को मोक्ष प्रदान करनेवाली विरक्तिस्वरूपा हैं।’












Recent Comments