May be an image of standing and text that says 'गंगा अवतरण जय गंगा मईया'                                                                                         

गंगा एक पवित्र नदी-
हिन्दुओं की सबसे पवित्र नदी है। इसके किनारे मैदानी इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए यह जीवन का आधार भी है। सच तो यह है कि गंगा घाटी दुनिया की और किसी भी नदी घाटी क्षेत्र की अपेक्षा अधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र है। खेदजनक बात यह है कि गंगा दुनिया की पाँच सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। यहाँ दी गई कहानी यह बताती है कि गंगा का धरती में आगमन कैसे हुआ और साथ ही उससे जुड़ी कुछ और मान्यतायों की भी बात करती है। वेदों, पुराणों और रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों में गंगा नदी का व्यापक उल्लेख मिलता है।
गंगा और राजा बलि
भगवान विष्णु धरती पर अलग-अलग समय में दस अलग-अलग अवतारों में अवतरित हुए हैं। प्रत्येक अवतार में उन्होंने धरतीवासियों को किसी भयंकर मुसीबत या असुर से बचाया है। ऐसे ही एक बार वे पृथ्वी पर वामन अवतार में आए। वामन अवतार में उन्होंने बौने ब्राह्मण का रूप धरा था। बलि चक्रवर्ती बहुत ही समृद्ध और शक्तिशाली असुर राजा था। जिसके पास घोड़े, हाथी, रथ, रिसाले और एक सेना भी थी। वह भगवान विष्णु का महान भक्त भी था। कहा जाता है कि अपनी इस भक्ति से बलि ने इतनी शक्ति पा ली थी कि देवताओं के राजा इन्द्र को अपना स्वर्ग का सिंहासन खतरे में पड़ता नजर आने लगा था। इन्द्र मदद माँगने भगवान विष्णु के पास पहुँचे। एक बड़े यज्ञ के दौरान अन्य राजाओं की तरह बलि भी ब्राह्मणों को मनचाही वस्तुएँ दान कर रहा था। भगवान विष्णु बौने ब्राह्मण का भेष धर बलि के पास पहुँचे। बलि को इस बात का बोध था कि उसके समक्ष स्वयं भगवान विष्णु उपस्थित हैं। क्योंकि वहाँ उपस्थित उसके गुरु शुक्राचार ने विष्णु को पहचान लिया था और बलि को इसके प्रति आगाह कर दिया था। अपने वचन पर बने रहते हुए बलि ने झुककर नमन करते हुए वामन ब्राह्मण से मनचाहा वर माँगने का आग्रह किया।ब्राह्मण ने उससे तीन कदम जमीन माँगी। राजा तुरन्त तैयार हो गया और ब्राह्मण को तीन कदम जमीन नाप लेने को कहा। और तभी जैसे चमत्कार हुआ, वामन ब्राह्मण ने विशाल आकार धारण किया, त्रिविक्रम का । त्रिविक्रम ने पहले कदम में पूरी धरती माप ली। दूसरे कदम में पूरा आकाश। अब तीसरे कदम के लिए कुछ शेष बचा न था। राजा बलि ने तीसरे कदम के लिए अपना सिर आगे कर दिया। तीसरा पैर बलि के सिर पर रख त्रिविक्रम ने बलि को पाताल लोक भेज दिया। पाताल लोक, तीसरा लोक जहाँ सर्प और असुरों का वास था। जब त्रिविक्रम का पैर आकाश नाप रहा था तब ब्रह्मा ने उनके चरण धोए थे क्योंकि यह भगवान विष्णु के भव्य रूप के चरण जो थे और उस पानी को उन्होंने अपने कमण्डल में इकट्ठा कर लिया था। यही पवित्र जल गंगा, ब्रह्मा की पुत्री कहलाया। एक और पौराणिक कथा के अनुसार गंगा हिमवान की पुत्री और उमा की बहन है। देवताओं को खुश करने के लिए इन्द्र गंगा को स्वर्ग ले गए।
दुर्वासा का अभिशाप
दन्तकथा यह भी है कि, ब्रह्मा की देखरेख में गंगा हँसते-खेलते बड़ी हो रही थी। एक दिन ऋषि दुर्वासा वहाँ आए और स्नान करने लगे तभी हवा का एक तेज झोंका आया और उनके कपड़े उड़ गए। यह सब देख पास ही खड़ी युवा गंगा अपनी हँसी को रोक नही पाई और जोर से हँस पड़ी। गुस्से में दुर्वासा ने गंगा को श्राप दे डाला कि वह अपना जीवन धरती पर एक नदी के रूप में व्यतीत करेगी और लोग खुद को शुद्ध करने के लिए उसमें डुबकियाँ लगाएँगे।
गंगा धरती पर कैसे पहुँची
कहा जाता है कि राजा सागर ने खुद को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इस खबर से देवराज इन्द्र को चिन्ता सताने लगी कि कहीं उनका सिंहासन न छिन जाए। इन्द्र ने यज्ञ के अश्व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के एक पेड़ से बाँध दिया। जब सागर को अश्व नहीं मिला तो उसने अपने 60 हजार बेटों को उसकी खोज में भेजा। उन्हें कपिल मुनि के आश्रम में वह अश्व मिला। यह मानकर कि कपिल मुनि ने ही उनके घोड़े को चुराया है, वो पेड़ से घोड़े को छुड़ाते हुए शोर कर रहे थे। उनके शोरगुल से मुनि के ध्यान में बाधा उत्पन्न हो रही थी। और जब उन्हें पता चला कि ये यह सोच रहे हैं कि मैने घोड़ा चुराया है तो वे अत्यन्त क्रोधित हुए। उनकी क्रोधाग्नि वाली एक दृष्टि से ही वे सारे राख के ढेर में तब्दील हो गए। वे सारे अन्तिम संस्कारों की धार्मिक क्रिया के बिना ही राख में बदल गए थे। इसलिए वे प्रेत के रूप में भटकने लगे। उनके एकमात्र जीवित बचे भाई आयुष्मान ने कपिल मुनि से याचना की वे कोई ऐसा उपाय बताएँ जिससे उनके अन्तिम संस्कार की क्रियाएँ हो सकें ताकि वो प्रेत आत्मा से मुक्ति पाकर स्वर्ग में जगह पा सकें। मुनि ने कहा कि इनकी राख पर से गंगा प्रवाहित करने से इन्हें मुक्ति मिल जाएगी। गंगा को धरती पर लाने के लिए ब्रह्मा से प्रार्थना करनी होगी। कई पीढि़यों बाद सागर के कुल के भगीरथ ने हजारों सालों तक कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने गंगा को धरती पर उतारने की भगीरथ की मनोकामना पूरी कर दी। गंगा बहुत ही उद्दंड और शक्तिशाली नदी थी। वे यह तय करके स्वर्ग से उतरीं कि वे अपने प्रचण्ड वेग से धरती पर उतरेंगी और रास्ते में आने वाली सभी चीजों को बहा देंगी। शिव को गंगा के इस इरादे का अन्दाजा था इसीलिए उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं में कैद कर लिया। भागीरथ ने तब शिव को मनाया और फिर उन्होंने गंगा को धीरे-धीरे अपनी जटाओं से आजाद किया। और तब गंगा भगीरथी के नाम से धरती पर आईं। उन राख के ढेरों से गुजरते हुए गंगा ने जहनु मुनि के आश्रम को डुबो दिया। गुस्से में आकर मुनि ने गंगा को लील लिया। एक बार फिर भगीरथ को मुनि से गंगा को मुक्त करने हेतु प्रार्थना करनी पड़ी। इस तरह गंगा बाहर आईं और अब वो जाह्नवी कहलाईं। इस तरह से गंगा का धरती पर बहना शुरू हुआ और लोग अपने पाप धोने उसमें पवित्र डुबकी लगाने लगे।
देवी गंगा
गंगा हमेशा से ही प्रथमपूज्य देवी के रूप में सम्मान पाती रही हैं। उनके धरती पर आने का कारण चाहे जो भी रहा हो – कोई श्राप या किसी दुखी इंसान की याचना । उनका रूप सदा ही दैवीय रहा है – चार भुजाएँ, तीन आँखें (भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने के लिए), आभूषणों से सुशोभित, मुकुट शोभा बढ़ाता अर्धचन्द्र, एक हाथ में कमल का फूल और दूसरे हाथ में रत्न-जवाहरातों से भरा कमण्डल। साड़ी से आच्छादित गंगा के एक ओर उन पर चमर ढुलाती हुई एक स्त्री तो दूसरी ओर उन पर सफेद छाते की छाया देती स्त्री। देवी, मकर की सवारी करती हैं जो आधे मगरमच्छ और आधी मछली से बना मिथकीय जीव है। कहा जाता है कि गंगा की धारा स्वर्ग, नर्क और धरती तीनों लोक में जाती है।
महाभारत में गंगा
कामधेनु, (इच्छा पूरी करने वाली गाय जो अपने मालिक की हर इच्छा पूरी कर सकती थी) एक दैवीय गाय है और सभी गायों की माता भी। वशिष्ठ मुनि के आश्रम में कामधेनु गाय थी जो उन्हें यज्ञ के लिए आवश्यक सभी सामग्री उपलब्ध कराती थी। एक बार वसु (छोटे भगवान) अपनी पत्नियों के साथ वशिष्ठ के आश्रम में घूमने आए। उनकी एक पत्नी कामधेनु पर मोहित हो गई और उसे पा लेने के लिए लालायित हो गई। वसु ने उसके लिए कामधेनु को चुरा लिया। जब यह बात वशिष्ठ मुनि को ज्ञात हुई तो वे बहुत क्रोधित हुए और दण्ड स्वरूप उन्हें श्राप दिया कि वे सब मानव रूप में धरती पर पैदा होंगे। जब वासुओं ने मुनि से क्षमा याचना की तो वे पिघल गए और अपने अभिशाप को कुछ कम करते हुए उन्होंने कहा कि जिस वासु ने इसकी शुरुआत की उसे लम्बे समय तक धरती पर जीवन व्यतीत करना होगा लेकिन वह धरती पर एक प्रसिद्ध व्यक्ति होगा। बाकी के सातों वासु अपने जन्म के एक वर्ष के भीतर स्वर्ग लौट सकेंगे। इसे कार्यरूप देने के लिए वासुओं ने गंगा से अनुरोध किया कि वे सभी को अपने बच्चों के रूप में रखें और वो मान गईं। फिर ऐसा हुआ कि एक बार हस्तिनापुर के राजा शांतनु ने गंगा नदी के तट पर एक खूबसूरत युवती को देखा। वे उससे प्रेम करने लगे और उन्होंने उससे विवाह के लिए पूछा। खूबसूरत युवती ने उन्हे बतलाया कि वह गंगा हैं और खुशी-खुशी उनकी पत्नी बनने के लिए हामी भर दी। मगर गंगा ने एक शर्त रखी – उनके किसी भी कार्य पर वो कोई सवाल नही करेंगे। उन्होंने शादी कर ली और वे बहुत खुश थे। लेकिन गंगा ने एक बहुत ही आश्चर्यजनक काम किया – जब भी उन्हें संतान होतीं, वे उसे नदी में बहा आतीं। सात बार अपने बच्चों को नदी में बहाते देखकर भी शांतनु शान्त रहे पर आठवीं बार वे खुद को रोक नहीं सके। जब शांतनु ने गंगा से पूछा कि वे अपने आठवें बच्चे को भी बहा क्यों रही हैं, तो वो मुस्कुराईं और बच्चे को शांतनु को सौंपकर स्वर्ग वापिस लौट गईं। स्वर्ग लौटने से पहले उन्होंने बतलाया कि ये बच्चे असल में वसु हैं। वसु ने उनसे प्रार्थना की थी कि वे उन्हें अपनी संतानों के रूप में जन्म दें। और उन्हे जल में विसर्जित इसलिए किया ताकि वो स्वर्ग वापिस जा सकें। आठवें को वो शांतनु की देख-रेख में छोड़ गईं जो बड़ा होकर भीष्म के नाम से विख्यात हुआ।
एक कहानी भीलों की
गंगा के बारे में भीलों की भी एक रोचक लोककथा है जो महाभारत की परम्परागत कथाओं से एकदम भिन्न है। और मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। भील जनजाति के लोग विभिन्न राज्यों में निवास करते हैं, पर कहा जाता है कि वे मध्य भारत के मूल निवासी हैं। एक मेंढ़क था जो गंगा की तीर्थयात्रा पर निकला। रास्ते में मवेशियों का एक झुण्ड उसके ऊपर से गुजर गया और इस तरह कुचले जाने से उसकी मौत हो गई। उसने एक महिला के शरीर में प्रवेश कर उसके बेटे के रूप में जन्म लिया। फिर काम करने के लिए वह इन्द्र के पास चला गया। वहाँ उसने अच्छी तरह काम किया और अन्त में वहाँ से आगे जाने की इच्छा व्यक्त की। वेतन के रूप में उसे एक गाड़ी भरकर सोना दिया गया। तब वो एक बार फिर गंगा की तीर्थयात्रा पर निकला। रास्ते में एक बैल की मृत्यु हो गई तब उसने भगवान सूर्य से मदद के लिए गुहार लगाई। भगवान ने मदद के बदले उससे आधी गाड़ी सोना माँगा। उसके तैयार हो जाने पर सूर्य भगवान ने बैल को पुनर्जीवित कर दिया। गंगा में डुबकी लगाकर उसने सारा सोना गंगा में विसर्जित कर दिया। वापिस लौटने पर भगवान सूर्य ने उससे अपने हिस्से का सोना माँगा। सोना देने में असमर्थ होने पर भगवान सूर्य ने उसे गीदड़ बना दिया। गीदड़ बनकर वह गंगा के किनारे के जंगल में रहने लगा। एक दिन खूबसूरत गंगा को देखकर उसने गंगा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। दुस्साहस से हँसती हुई गंगा अपने वेग से बहती रही। अगली बार जब फिर उसने गंगा से यह बात कही तो गंगा ने उस पर पत्थर फेंका जिससे उसकी आँख में चोट लग गई। इससे नाराज गीदड़ ने गंगा का पीछा किया। वो भागकर अपने गुरु सरसंकर के पीछे जाकर छिप गई। जैसे ही गीदड़ नज़र आया गुरु ने उसे जला दिया। गुरु ने उसकी राख गंगा को दी और उसे नदी में बहाने को कहा। जब गंगा ने राख नदी में बहाई तो राख से आवाज आई कि वो यह सब ऐसे कर रही है जैसे वह उसका पति हो।गंगा पाताल लौट गई लेकिन समय के साथ उसकी राख नदी किनारे साल के पेड़ के रूप में उगी और एक बार फिर वह गंगा से बोला कि वह उसकी पत्नी की तरह है क्योंकि वह उसे गले लगा सकता है। प्रचण्ड गंगा ने उसे पानी से बाहर कर दिया। दर्जनों साल तक वह पेड़ वहीं पड़ा रहा और सूख गया। एक दिन गुरु सरसंकर वहाँ से गुजरे और उन्होंने उस लकड़ी में आग लगा दी। जलाने पर उसमें से शांतनु निकलेवे गुरू के साथ-साथ चल दिए। शांतनु ने धनुष और बाण तैयार किए और अंधाधुन्ध तरीके से पक्षियों और जानवरों को मारने लगे। गुरु ने शांतनु से ऐसा न करने का अनुरोध किया। उन्हें कहा कि यह पाप है। पर हठीले शांतनु ने कहा कि वो तब तक यह जारी रखेंगे जब तक गंगा उनसे विवाह नहीं कर लेतीं।गुरु ने गंगा को बुलाया और शांतुन से शादी करने के लिए कहा। गंगा शांतनु से विवाह करने को तैयार हो गई मगर उन्होंने एक शर्त रखी। शर्त के अनुसार उनकी हर संतान को शांतनु गंगा में प्रवाहित कर आएँगे। शांतनु ने शर्त मान ली और इस तरह कई जन्मों की मुसीबतों और आजमाइशों के बाद आखिरकार शांतनु ने गंगा को पा ही लिया। वों बादलों के महल मे रहने लगे। उनके तीन पुत्र हुए और तीनों ही बार शांतनु ने उन्हें खत्म कर दिया लेकिन जब एक राजकुमारी ने जन्म लिया तो शांतनु ने उसे अपने किसी विश्वासपात्र के पास छोड़ दिया। जब गंगा ने शांतनु से पूछा तो उन्होंने झूठ बोल दिया। गंगा इस बात से बेहद परेशान हुईं। अपनी तीन तालियों से उन्होंने तीनों राजकुमारों को वहाँ उपस्थित कर दिया लेकिन वह राजकुमारी वहाँ उपस्थित नहीं हुई। शांतनु के इस झूठ के कारण गंगा ने अपनी शादी तोड़ दी और शांतनु को छोड़ दिया।
1. यह नदी दक्षिणी हिमालय के गंगोत्री ग्लेसियर से निकलती है।
2. गंगा के मुहाने पर बना सुन्दरबन डेल्टा दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा है।
3. फरक्का और हरिद्वार दो ऐसी जगह हैं जहाँ गंगा पर सबसे बड़े बाँध बने हैं।
4. ब्रह्मपुत्र के साथ-साथ गंगा नदी तंत्र गंगा डाल्फिन का निवास है। यह दुनिया भर में पाई जाने वाली मीठे पानी की चार मात्र डाल्फिन प्रजातियों में से एक है। ये विलक्षण हैं क्योंकि इनकी आँखों में लैंस नहीं होते और ये अंधी होती हैं।
5. गंगा अत्यंत प्रदूषित नदी है और मानवीय हस्तक्षेप के चलते यह प्रदूषण इसके उद्गम से ही शुरू हो जाता है।
6. गंगा में ऑक्सीजन धारण करने की अद्भुत क्षमता है और इसके जरिए बैक्टीरिया को मारकर यह खुद को साफ करती रहती है।
7. अत्याधिक प्रदूषित गंगा को साफ करने के लिए कई प्रस्ताव बनाए गए लेकिन कोई खास प्रगति नहीं हो सकी।
8. गंगा के प्रवाह में ऐसे भी कई स्थान हैं जहाँ पानी इतना साफ नहीं है कि वहाँ स्नान किया जाए। इसके बाद भी इसे पवित्र नदी माना जाता है और लाखों लोग रोज इसमें स्नान करते हैं।
9. गंगा न सिर्फ एक पवित्र नदी है जिसमें लोग स्नान करते हैं बल्कि इसके कई स्थानों पर नौकायन भी किया जाता है।
10. गंगा अपनी सहायक नदियों सहित, भारत और बंग्लादेश की कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।