वैदिक साहित्य में धर्म की बहुत महिमा बताई गई है।मनु महाराज ने लिखा है―
🌹नामुत्र हि सहायार्थं पितामाता च तिष्ठतः ।
न पुत्रदारं न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति केवलः ।।
―(मनु० ४/२३९)
परलोक में माता, पिता, पुत्र, पत्नि और गोती (एक ही वंश का) मनुष्य की कोई सहायता नहीं करते।वहाँ पर केवल धर्म ही मनुष्य की सहायता करता है।
🌹एकः प्रजायते जन्तुरेक एव प्रलीयते ।
एकोऽनुभुङ्क्ते सुकृतमेक एव च दुष्कृतम् ।।
―(मनु० ४/२४०)
जीव अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मृत्यु को प्राप्त होता है।अकेला ही पुण्य भोगता है और अकेला ही पाप भोगता है।
🌹एक एव सुह्रद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः ।
शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यद्धि गच्छति ।।
―(मनु० ८/१७)
धर्म ही एक मित्र है जो मरने पर भी आत्मा के साथ जाता है, अन्य सब पदार्थ शरीर के नष्ट होने के साथ ही नष्ट हो जाते हैं।
🌹मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्ठसमं क्षितौ ।
विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति ।।
―(मनु० ४/२४१)
सम्बन्धी मृतक के शरीर को लकड़ी और ढेले के समान भूमि पर फेंककर विमुख होकर चले जाते हैं, केवल धर्म ही आत्मा के साथ जाता है।
धर्म के आचरण पर मनु महाराज ने बहुत बल दिया है―
🌹अधार्मिको नरो यो हि यस्य चाप्यनृतं धनम्।
हिंसारतश्च यो नित्यं नेहासौ सुखमेधते ।।
―(मनु० ४/१७०)
जो अधर्मी, असत्य भाषी, अपवित्र व अनुचित तथा हिंसक है, वह इस लोक में सुख नहीं पाता।
🌹 न सीदन्नपि धर्मेण मनोऽधर्मे निवेशयेत् ।
अधार्मिकाणां पापानामाशु पश्यन्विपर्ययम् ।।
―(मनु० ४/१७१)
धर्माचरण में कष्ट झेलकर भी अधर्म की इच्छा न करे, क्योंकि अधार्मिकों की धन-सम्पत्ति शीघ्र ही नष्ट होती देखी जाती है।
🌹नाधर्मश्चरितो लोके सद्यः फलति गौरिव ।
शनैरावर्तमानस्तु कर्तुर्मूलानि कृन्तति ।।
―(मनु० ४/१७२)
संसार में अधर्म शीघ्र ही फल नहीं देता, जैसे पृथिवी बीज बोने पर तुरन्त फल नहीं देती।वह अधर्म धीरे-धीरे कर्त्ता की जड़ों तक को काट देता है।
🌹अधर्मेणैधते तावत्ततो भद्राणि पश्यति ।
ततः सपत्नाञ्जयति समूलस्तु विनश्यति ।।
―(मनु० ४/१७४)
अधर्मी प्रथम तो अधर्म के कारण उन्नत होता है और कल्याण-ही-कल्याण पाता है, तदन्नतर शत्रु-विजयी होता है और समूल नष्ट हो जाता है।
🌹धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।।
―(मनु० ८/१५)
मारा हुआ धर्म मनुष्य का नाश करता है और रक्षा किया हुआ धर्म मनुष्य की रक्षा करता है।इसलिए धर्म का नाश नहीं करना चाहिए, ऐसा न हो कि कहीं मारा हुआ धर्म हमें ही मार दे !
🌹वृषो हि भगवान् धर्मस्तस्य यः कुरुते ह्यलम् ।
वृषलं तं विदुर्देवास्तस्माद्धर्मं न लोपयेत् ।।
―(मनु० ८/१६)
ऐश्वर्यवान् धर्म सुखों की वर्षा करने वाला होता है।जो कोई उसका लोप करता है, देव उसे नीच कहते हैं, इसलिए मनुष्य को धर्म का लोप नहीं करना चाहिए।
🌹चला लक्ष्मीश्चला प्राणाश्चलं जीवितयौवनम् ।
चलाचले हि संसारे धर्म एको हि निश्चलः ।।
धन, प्राण, जीवन और यौवन―ये सब चलायमान हैं। इस चलायमान संसार में केवल एक धर्म ही निश्चल है।
प्रश्न उठता है कि जिस धर्म की इतनी महिमा कही गई है, वह धर्म क्या है ? इस सन्दर्भ में मनु महाराज का श्लोक ध्यान देने योग्य है―
🌹धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।🌹
―(मनु० ६/९२) धीरज, हानि पहुँचाने वाले से प्रतिकार न लेना, मन को विषयों से रोकना, चोरी न करना, मन को राग-द्वेष से परे रखना, इन्द्रियों को बुरे कामों से बचाना, मादक द्रव्य नशा आदि का सेवन न करके बुद्धि को पवित्र रखना, ज्ञान की प्राप्ति, सत्य बोलना और क्रोध न करना―ये धर्म के दश लक्षण हैं।
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