वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा का क्या महत्व है इसे समझने के लिये हमें थोड़ा गणित ज्योतिष में भी जाना चाहिए। फलित ज्योतिष में रुचि रखने वालों को गणित ज्योतिष की आधारभूत बातों की समझ भी होनी चाहिए।
हमारा वार्षिक पञ्चाङ्ग चन्द्रमा की गति पर ही आधारित है। चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है। वैदिक ज्योतिष की मूलभूत अवधारणा कि, सभी ग्रह पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं, चन्द्रमा पर बिल्कुल फिट बैठती है। चन्द्रमा पृथ्वी का एक चक्कर 27.3 दिन में लगाता है। यानि सत्ताईस दिन और साढ़े सात घण्टे में। अतः वह बारह राशियों में भी इतने दिनों में एक चक्कर पूरा कर लेता है। जैसा कि पिछली बार सूर्य के बारे में बताते हुए कहा था कि राशियां, इसी परिक्रमण पथ के बारह बराबर हिस्से हैं। यह सत्ताईस दिन का परिक्रमण एक राशि में सवा दो दिन प्रति राशि के औसत से होता है।
विज्ञान के अनुसार चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। तो सिद्धांत के अनुसार चन्द्रमा पृथ्वी का ही प्रतिनिधित्व करता है। इस अवधारणा को ज्योतिष में भी फिट करके देखें तो काफी बातें इसके पक्ष में हैं। चन्द्रमा को ज्योतिष में माता की संज्ञा दी गयी है। चन्द्रमा को जल का कारक माना गया है। हमारी पृथ्वी का तीन चौथाई भाग जल है। हमारे शरीर का 60 प्रतिशत घटक जल है। अतः चन्द्रमा का कारकत्व और प्रभाव भी अधिक है।
जन्मकुंडली का चक्र, जिसका पहला भाव लग्न कहलाता है (भाव समझने के लिये पेज की डिस्प्ले पिक्चर/DP देखें। जहां 1 लिखा है वह लग्न यानि पहला भाव है। बाकी के भाव भी क्रमशः 2,3,4… से दर्शाए गए हैं) , वह कुंडली होती है जो जन्म के समय पूर्व में उदित राशि के आधार पर होती है। उस स्थिति में जो ग्रह जिस राशि में होते हैं, वह कुंडली मे यथानुरूप दर्शा दिए जाते हैं।
चन्द्रमा जन्म के समय जिस राशि में होता है उस राशि का जातक के जीवन में विशेष महत्व होता है। चन्द्रमा की वह राशि जातक के लग्न कुंडली में जिस भाव में पड़ती है, फलित ज्योतिष में उसके भावफल का भी विशेष महत्व होता है। साथ ही चन्द्रमा उस समय जिस नक्षत्र में संचरण कर रहा होता है, वही जातक का जन्म नक्षत्र कहलाता है और उस नक्षत्र फल का भी फलित ज्योतिष में विशेष महत्व होता है।
नक्षत्रों के बारे में भी बेसिक चीजें जान लें, विस्तार से अलग से बताया जाएगा। चन्द्रमा का सवा सत्ताईस दिन का परिक्रमण सत्ताईस भागों में बांटा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार यह सत्ताईस नक्षत्र दक्ष प्रजापति की सत्ताईस पुत्रियां हैं, जिनका विवाह चन्द्रदेव के साथ हुआ था। मिथक और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। मिथक कहता है कि चन्द्रमा प्रतिदिन अपनी एक पत्नी के साथ रमण करते हैं। हालांकि ज्योतिष ने चन्द्रमा को एक स्त्री ग्रह माना है तो हम मिथक की बजाए विज्ञान के नजरिये से इसे देखेंगे। एक राशि में लगभग सवा दो दिन रहता है और एक नक्षत्र में लगभग एक दिन। इसलिये एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं। गणना की एक्यूरेसी के लिये नक्षत्र को भी चार चरणों में बांटा गया है। 27 नक्षत्र के 27×4 यानि 108 चरण होते हैं। बारह राशियों में नौ-नौ बराबर चरण होते हैं। यही कारण है कि जप विधान में और अंकशास्त्र में 108 का विशेष महत्व है।
चन्द्रमा को ज्योतिष में माता का, मन का, जल का, यात्रा , बायीं आंख, द्रव पदार्थ (liquid) इत्यादि का कारक माना गया है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण माता और मानसिक स्वास्थ्य का कारकत्व है। जन्म चक्र में जिस राशि में चन्द्रमा उपस्थित होता है उसे प्रथम भाव में रखकर बाकी ग्रहों को क्रमानुसार रखा जाए तो चन्द्र कुंडली बनती है। जन्मकुंडली जातक में शारीरिक रंगरूप, स्वास्थ्य और जीवन के अन्य विषयों को दर्शाती है तो चन्द्र कुंडली जातक के मानसिक स्वरूप को बताती है। इसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।
चंद्रमा का रंग सफेद है। इसके स्वामित्व की राशि है कर्क राशि। सत्ताईस नक्षत्रों में से चन्द्रमा को तीन नक्षत्रों का अधिपत्य मिला है, रोहिणी, हस्त और श्रवण। चन्द्रमा वृष राशि में उच्च का होता है , 3 अंश पर परमोच्च होता है। परमोच्च की यह अवस्था कृतिका नक्षत्र में पड़ती है। चन्द्रमा वृश्चिक राशि मे नीच का होता है, 3 अंश पर ही परमनीच अवस्था मे होता है।
चन्द्रमा बलवान हो तो जातक को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते है। बली चंद्रमा के कारण जातक मानसिक रूप से सुखी, एवं स्वस्थ रहता है। उच्च मानसिक शांति रहती है, कल्पना शक्ति भी विलक्षण होती है। बली चंद्रमा के कारण जातक के माता से संबंध मधुर होते हैं और माता का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।
पीड़ित या निर्बल चंद्रमा के कारण व्यक्ति को मानसिक पीड़ा होती है। इस स्थिति में व्यक्ति की याददाश्त कमज़ोर होती है, माता को किसी न किसी प्रकार की परेशानी बनी रहती है। देखा जाता है कि घर में पानी की कमी हो जाती है। कई बार जातक पीड़ित चन्द्रमा के कारण डिप्रेशन का शिकार हो जाता है और यह भी देखा गया है कि अतिपीड़ित चन्द्रमा वाला जातक आत्महत्या करनी की कोशिश भी कर गुजरता है।
चन्द्रमा की पीड़ा से जातक सरदर्द, तनाव, डिप्रेशन, श्वसन तंत्र के रोगों और रक्त विकार से भी पीड़ित हो सकता है।
फलित ज्योतिष में चन्द्रमा का कारकत्व सिंचाई, जल सम्बंधित कार्य, दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स, रसदार फल व सब्जियों… स्थानों में हिल स्टेशन, समुद्री बीच, कुएं, जंगल जैसी जगहों का है।
चन्द्रमा का रत्न मोती है। चन्द्रमा का कारकत्व कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न के जातकों की कुंडली मे विशेष होता है। तुला लग्न में चन्द्रमा दशम भाव का स्वामी होता है इसलिये इस लग्न में भी चन्द्रमा एक कारक ग्रह है। कारकत्व होने पर मोती पहनना बहुत लाभप्रद है।
चन्द्रमा किसी राशि को शत्रु भाव से नहीं देखता। अपनी नीच राशि वृश्चिक में भी बहुत से अच्छे फल प्रदान करता है। चन्द्रमा हमारी समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यदि चन्द्रमा राशि में अकेले हो, उसके दूसरे, सातवें व बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तब यह कुंडली में कमजोर होता है। बृहस्पति से छठें-आठवें के सम्बंध में हो तब भी कमजोर होता है। इस परिस्थिति में आर्थिक समस्याएं पैदा करने लगता है।
चन्द्रमा राहु-केतु के साथ या दृष्टि पर हो तो ग्रहण बनता है। मनोरोग व उलझने देता है। शनि के साथ या दृष्टि सम्बन्ध पर हो तो मानसिक उद्वेग, दुश्चिंता देता है, लेकिन शनि की ही राशि मे हो तो अच्छे फल प्रदान करता है। शनि और चन्द्रमा मजबूत हों, स्वराशि या उच्च राशि में स्थित हों और एक दूसरे से दृष्टि सम्बन्ध पर हों तो सन्यास की तरफ जातक को उन्मुख करते हैं।
चन्द्रमा पीड़ित हो तो सोमनाथ शिव की पूजा करने से लाभ होता है। राहु केतु या शनि से पीड़ित हों तो भी शिवाराधना से लाभ होता है। सूर्य के साथ अस्त हो तो अमावस्या दोष में शिवाराधना के साथ ही सूर्योपासना भी करनी चाहिए। सोमवार का व्रत करने से चन्द्रमा के अच्छे फल प्राप्त होते हैं। पूर्णिमा का व्रत करने से आर्थिक विषमताएं दूर होती हैं।
चन्द्रमा का वैदिक मन्त्र है-
ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य
पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
चंद्रमा का तांत्रिक मंत्र
ॐ सों सोमाय नमः
चंद्रमा का बीज मंत्र
ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः