पंचतंत्र की कथा : अनुकरणीय
किसी कुएँ में गंगदत्त नाम को मेढकों का राजा रहता था। वह अपने भागीदारों से अत्यधिक परेशान होकर एक दिन रहट की बाल्टी में चढ़कर कुएँ से बाहर निकल आया। उसने अपने भागीदारों से बदला लेने का विचार करके बिल में प्रवेश करते हुए एक काले सर्प को देखा और उसकी सहायता से अपने भागीदारों के विनाश करने का निश्चय किया। उसने बिल के द्वार पर जाकर सर्प को बुलाया और उससे मैत्री करने का प्रस्ताव किया। पहले तो सर्प (प्रियदर्शन) इसके लिए तैयार न हुआ, किन्तु बाद में गंगदत्त की करुण कहानी सुनकर और उसके द्वारा भोज्य को सुलभतापूर्वक प्राप्त होता देककर उसके मैत्री प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। गंगदत्त ने उसे पक्के कुएँ में रहट के मार्ग से ले जाकर जल के पास स्थित कोटर (वह खोखला अंश, जिसमें पक्षी, साँप आदि रहते हैं।) में बैठकर सुख से भागीदारों का विनाश करने के लिए कहा और अपने परिवार वालों के भक्षण का निषेध कर दिया।
मेढकों का समूल विनाश- गंगदत्त ने सर्प को अपने भागीदार दिखा दिये। सर्प धीरे-धीरे उसके ‘समस्त भागीदारों को, कुछ को उसकी उपस्थिति में और कुछ को उसकी अनुपस्थिति में; चट कर गया। मेढकों के समाप्त हो जाने पर सर्प ने गंगदत्त से कहा कि मैंने तुम्हारे शत्रुओं को खा लिया है, अब मुझे दूसरा भोजन लाकर दो। इसके बाद गंगदत्त ने उसे अपने परिवार का एक मेढक प्रतिदिन देना प्रारम्भ कर दिया। सर्प उसे खाकर उसके पीछे दूसरों को भी खा लेता था। इसी प्रकार एक दिन उसने दूसरे मेढकों को खाकर गंगदत्त के पुत्र यमुनादत्त को भी खा लिया। कुछ दिनों बाद केवल गंगदत्त शेष रह गया।
गंगदत्त को कुएँ से बाहर जाना- एक दिन सर्प प्रियदर्शन ने गंगदत्त से कहा कि मैं भूखा हूँ, मुझे कुछ भोजन दो। गंगदत्त ने कहा कि तुम चिन्ता मत करो, मैं दूसरे कुएँ से मेंढक लाकर तुम्हें दूंगा और वह रहट की बाल्टी में चढ़कर कुएँ से बाहर आ गया। बहुत दिनों तक गंगदत्त के न आने पर प्रियदर्शन ने अन्य कोटर में रहने वाली गोध्रा से कहा कि तुम गंगदत्त को खोजकर मेरा सन्देश उससे कहो कि यदि दूसरे मेढक नहीं आते हैं तो तुम अकेले ही आ जाओ, मैं (प्रियदर्शन) तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।
गंगदत्त का न लौटना- गोधा ने सर्प के कहने से गंगदत्त को खोजकर कहा कि तुम्हारा मित्र (प्रियदर्शन) तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, तुम वहाँ शीघ्र चलो। तब गंगादत्त ने गोधा से कहा कि “भूखा कौन-सा पाप नहीं करता; अतः हे भद्रे! प्रियदर्शन से कहो कि गंगदत्त पुनः कुएँ में वापस नहीं जाएगा।’ ऐसा कहकर उसने गोधा को वापस भेज दिया।
बुभुक्षित:किन्न करोति पापं क्षीणा:नरा:निष्करूणा: भवन्ति।
आख्या हि भद्रे प्रियदर्शनस्य न गंगदत्त: पुनरेति कूपम्।।
यह कथा हमे समाज के अविश्वासी व्यक्तियों के प्रति सजग कराने के लिए लिखी गई है। इसका उद्देश्य उस काल में जितना रहा होगा उतना ही इस काल या हर काल खंड में रहेगा।
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