हमारे देश में शादी और पत्नी ये ऐसे विषय है जिनपर ढेरो साहित्य की रचना हो चुकी है।कमोबेश हर जगह पत्नी को केंद्र में रखकर शादी के बाद एक पुरुष के जीवन में सृजित हुई नकारात्मकता का इतना जोरदार चित्रण होता है कि किसी और को क्या कहे खुद ये पत्निया भी साहित्य सेवन के उपरांत अतिप्रसन्न हो जाती हैं।
एक सज्जन ने कहा की पति पत्नी एक ही गाड़ी के दो पहिये हैं, लेकिन शादी के बाद एक पहिया साईकिल का हो जाता है तो दूसरा ट्रैक्टर का। एक जगह पढ़ा कि कोई महाशय मांग भरने की सजा में मांग मांग कर खा रहे हैं तो एक महानुभाव का विचार है की जीवन में जितना भी प्रकाश है वो विवाह के पूर्व ही द्रष्टव्य है। विवाह के पहले की वाह वाह विवाह के बाद आह में बदल जाती है।
ऐसे और भी न जाने कितने किस्से हर रोज मिलते हैं, लेकिन शादी के बाद जीवन में आये सकारात्मक परिवर्तनों को तो किसी ने कभी नहीं बताया। हमारे टोला वाले बाबा का कहना है कि “हमार बुढ़िया दुइयो दिन कहीँ चल जाले त हम कुसारी होखे लागेनी, एक लोटा पानियों खातिर हल्ला करके पड़ेला, बाकिर हमार बूढ़ा कुल्हि जाने ली जे कब हमरा चाह चाहीं आ कब हमरा झाड़ा लागी।”
एक इंसान जब अपने बारे में सोचता सोचता थकने लगता है तब उसे जरूरत महसूस होती है एक और इंसान की जो उसके बारे में सोचे।और यही जरूरत समाज में शादी नाम की परम्परा की रूपरेखा तय करती है।
मुझे अपनी माँ से प्रेम है, अपने पिता से प्रेम है, सारे सम्बन्ध, टोल पड़ोस, दोस्त मित्र यहां तक कि घर की एक एक ईंट और मुहल्ले के एक एक पेड़ से प्रेम है।किसी के लिए भी इन्हें छोड़ना मेरे बस की बात नहीं।फिर ख्याल आता है की यही भावना तो सबके दिल में होती होगी, उस लड़की के दिल में भी जो अपना सबकुछ पीछे छोड़कर अपने पल्लू में मेरे सबकुछ की गांठ बांधकर मेरे पीछे दउरी में डगमगाती चली आई थी। वही लड़की जिसकी उम्मीदें और आकांक्षाएं दो साल पहले धरती और आकाश की दूरी को धूल चटाती थीं लेकिन अब पूरे दिन धूल साफ करती है मेरे घर के फर्श की इस उम्मीद में की मुझे उसके कल का एक कतरा भी बिखरा कहीं दिखाई न दे। अपना नाम तो जोड़ ही लिया मेरे नाम से अब मेरे ही बच्चे को लेके घूमती रहती है रात भर घर के गलियारों में की कहीं घर की दाल रोटी की कोफ़्त मेरी नींद को मेरे बच्चे की आवाज के साथ मिलकर तहस नहस न कर दे। आखिर इस बच्चे को भी तो मेरा नाम आसमान पर ले जाना है।
मैं किसी का मजाक नही उड़ा सकता उसका तो बिल्कुल भी नहीं जिसके चेहरे पर भाव मेरे ही चेहरे को देख कऱ बदलते हों। ये केवल मेरी बात नहीं है, आँखे बन्द कर ध्यान से देखा जाय तो हर घर में एक औरत अपना नाम, अपना स्वार्थ और अपनी बुनियाद के तवे पर अपने पति के कल की रोटी सेकती दिख जायेगी…







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