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1+1=1 एवं 1-1=2
स्त्री को घर के मान-सम्मान का प्रतीक माना जाता है।इसीलिए शास्त्रों में स्त्री की रक्षा के लिए विशेष नियम बनाए गए हैं। शास्त्रों में लिखा है कि-
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।
रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रमर्हति।
इस श्लोक के अनुसार बालपन में यानी बचपन में स्त्री की रक्षा की जिम्मेदारी उसके पिता की होती है। जब स्त्री का विवाह हो जाता है तो उसकी रक्षा की पूरी जिम्मेदारी उसके पति की होती है। बुढ़ापे में स्त्री की संतानों को ही उसकी रक्षा करनी चाहिए। जिन घरों में इस बात का ध्यान रखा जाता है, वहां नारी पूरी तरह सुरक्षित रहती है और घर का मान-सम्मान बना रहता है।
सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिए घर में शास्त्रों में बताई गई स्त्रियों से जुड़ी कुछ बातों का ध्यान हमेशा रखना चाहिए। जिन घरों में इन बातों का ध्यान रखा जाता है, वहां दरिद्रता नहीं रहती है। शास्त्रों में लिखा है कि-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रफला: क्रिया।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां देवी-देवता निवास करते हैं। जिन घरों में स्त्रियों का अपमान होता है, वहां सभी प्रकार की पूजा करने के बाद भी भगवान निवास नहीं करते हैं। भगवान की कृपा के बिना घर में हमेशा ही गरीबी रहती है। गरीबी को दूर रखने के लिए स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए। देवी-देवताओं की पूजा करने से परेशानियां दूर होती हैं और अक्षय पुण्य मिलता है। इसीलिए काफी लोग नियमित रूप से पूजा करते हैं। जो स्त्रियां विवाहित हैं, शास्त्रों में लिखा है कि-
नास्ति स्त्रीणां पृथग्यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषणम्।
पिता शुश्रूषते येन तेन स्वर्गे महीयते।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि विवाहित स्त्रियों को अलग पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। यानी स्त्रियों को सभी पूजन कर्म अपने पति के साथ ही करना चाहिए। यदि शादी के कोई स्त्री अकेले ही पूजा करती है तो उसे पूजा से पूर्ण पुण्य प्राप्त नहीं हो पाता है। पूर्ण शुभ फल पाने के लिए पति-पत्नी, दोनों को ही एक साथ पूजा करनी चाहिए। यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है “पति च पत्नी च(1+1) = दम्पति”, सृजनार्थ (1-1=2 ) एवं { मातृगर्भरूपा जीव 1- गर्भस्थ जीव 1= 2 जीवात्मा परमात्मा भेद से हो जाता है। } व्याख्यायें कुछ और भी हो सकती है ||