भारतीय संस्कृति में मातृ एवं पितृ दिवस
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हमारे यहाँ मातृ देवो भव , पितृ देवो भव , आचार्य देवो भव की परम्परा है। मंगलाचरण वन्दन में”मातृ पितृ चरण कमलेभ्यो नम: ” कहकर प्रतिदिन उनकी पूजा करते हैं।माता पिता देव स्वरूप हैं।भगवान श्रीराम प्रात: काल उठकर सर्व प्रथम माता पिता एवं गुरू की वन्दना करते हैं।”प्रातकाल उठ करि रघुनाथा , गुरु पितु मात नवावहिं माथा ।” धर्मव्याध कहता है -“माता पिता च भगवन् एतो मे दैवतं परम्। यत् दैवतभ्य: कर्तव्यं तदोभ्यां करोम्यहम् ।।”माता पिता हमारे देवता हैं । जो देवताओं के लिए किया जाता है, वही मैं इनके लिए करता हूँ। हम लोग प्रात: प्रतिदिन देव तर्पण, ऋषि तर्पण,मातृ तर्पण, पितृ तर्पण करते हैं। यहाँ तक कि पूर्वजों की याद में एक पूरा पक्ष पितृपक्ष मनाते हैं।हमारे यहाँ तो प्रतिदिन मातृ दिवस एवं पितृ दिवस है। पाश्चात्यों में मनमानी है। शादी विवाह किए कुछ दिन साथ रहे। दो चार बच्चा पैदा कर दिए ।छूटी छूटा हो गयी। माँ कहीं, बाप कहीं, बच्चे कहीं।बाद को माँ बाप वृध्दाश्रम में। इसलिए साल में एक दिन वे लोग मिलते हैं। फादर्स डे मदर्स डे मनाते हैं।उन्होंने अपनी मान्यता हम पर थोप रखी है तो उन्हीं की देखादेखी हम भी फादर्स डे मना रहे हैं। हमें मानसिक गुलामी से भी आजाद होने की जरूरत है।हमारी सनातन संस्कृति सर्वोच्च है।

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