
हस्तरेखाएं कुंडली का आपसी परीक्षण
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हाथ की रेखाओ की बनाबट और ग्रह पर्वत कुंडली का दूसरा रूप है ज्योतिष और हस्तरेखा एक ही विद्या के दो रूप है।

इसी विषय पर आज बात करेंगे हथेली और हस्तरेखाओं से कैसे जाने कुंडली के ग्रह और भावो की स्थिति।

हथेली में शुक्र पर जीवन रेखा का पूरी गोलाई के साथ शुरू से आखरी तक स्पष्ट और बली होकर चलना जन्मकुंडली में लग्न लग्नेश की स्थिति को मजबूत और शुभ स्थिति में दर्शाता है

यदि जीवन रेखा पर कोई अशुभ चिन्ह या कट हो,टूटी हो तो यह कुंडली में लग्न या लग्नेश या लग्न लग्नेश दोनों की स्थिति अशुभ और पीड़ित है
यह दर्शाता है साथ ही जीवन रेखा के सहारे से बना शुक्र पर्वत कुंडली में शुक्र की स्थिति को बताता है शुक्र पर्वत का विकसित और उठा हुआ होना दोष मुक्त होना कुंडली में शुक्र की स्थिति को मजबूत और अच्छी दर्शाता है।
हाथ की बनी भाग्यरेखा कुंडली के नवम भाव की सूचक होती है
भाग्यरेखा की शुभ अशुभ, कमजोर बलवान जैसी स्थिति होती है उसी के अनुसार कुंडली के नवम भाव की स्थिति होती है यदि भाग्यरेखा कटी टूटि, अस्त व्यस्त है तो कुंडली में नवम भाव और इसका स्वामी पीड़ित और दुष्प्रभाव में होता है यदि शुभ और बली है तो नवम भाव की स्थिति शुभ होती है हथेली में गुरु शनि पर्वत का बली और अच्छा होना नवम और दशम भाव की स्थिति को अच्छा बताता है।

बृहस्पति पर्वत पर शुभ चिन्हों जैसे क्राँस या त्रिकोण का होना साथ ही भाग्यरेखा का बलवान होना कुंडली के द्वितीय भाव और एकादश भाव की स्थिति अच्छी है इसका ज्ञान कराता है।

कुंडली का तृतीय और एकादश भाव छोटे भाई बहन और मित्रो का होता है हथेली में मंगल पर्वत से कोई रेखा जीवन रेखा की और चले तो यह भाई बहनो की सूचक है और हाथ की उंगलियो पर खड़ी रेखाएं मित्रो की सूचक होती है

यह रेखा अच्छी और बली है तो तृतीय भाव और एकादश भाव जो भाई-बहनो का होता है कि स्थिति कुंडली में अच्छी बताती है यदि हाथ की ऊँगलियो के पोरुओ पर यह रेखा खंडित है तो कुंडली के तृतीय और एकादश भाव+कही न कही मंगल और गुरु कुंडली में दूषित होते है जिस कारण भाई- बहन से सम्बन्ध को ख़राब या इनका सुख न होना बताता है।

जीवन रेखा से कुछ रेखाओ का निकलकर गुरु पर्वत की ओर जाना कुंडली में गुरु और शुक्र की अच्छी स्थिति को बताता है।

जिन ग्रह पर्वतो का रेखाओ के द्वारा आपस में सम्बन्ध हथेली में होता है वह ग्रह जन्मकुंडली में आपस में सम्बन्ध बनाये होते है।

यदि ग्रह शुभ स्थिति में केंद्र त्रिकोण के स्वामी होकर इन्ही भावो में सम्बन्ध बनाते है तो हथेली में इन्ही ग्रह पर्वतो पर शुभ चिन्ह होते है महत्वपूर्ण रूप से जैसे त्रिकोण, वर्ग, चतुर्भुज आदि का हाथ की विवाह रेखा कुंडली के सप्तम भाव और इस भाव के स्वामी की स्थिति को को दर्शाती है जैसी शुभ अशुभ विवाह रेखा हाथ में होती है उसी के अनुसार जन्म कुंडली या नवमांश कुंडली में सातवें भाव भावेश की स्थिति होती है।

हथेली में बनी मष्तिष्क रेखा कुंडली के पंचम भाव भावेश की स्थिति को बताती है

मष्तिष्क रेखा बली हो तो कुंडली का पंचम भाव भावेश भी बली होता है।

मस्तिष्क रेखा का अंत में दोहरी या तीन मुखी होना पंचम भाव में या पंचमेश के साथ कई ग्रहो का आपसी सम्बन्ध होता है यह बात हाथ की मष्तिष्क रेखा बताती है या दूसरे शब्दों में कहे मस्तिष्क रेखा कुंडली के पंचम भाव की शुभ-अशुभ , बली-कमजोर आदि स्थिति को बता देती है।
इसी तरह हथेली की उंगलियो के पोरुओ से कुंडली के षष्ठम भाव संबंधी फल शत्रु पक्ष की स्थिति जानी जा सकती है।

हथेली में अनेक अशुभ रेखाओ का जाल कही न कही कुंडली में षष्ठम और अष्टम भाव का सम्बन्ध अशुभ स्थिति में केन्द्रेश त्रिकोण से होता है या केंद्र त्रिकोण के स्वामी षष्ठम, अष्टम भाव में अशुभ प्रभाव युक्त होते है।

हथेली में जिन भी ग्रहो का झुकाब एक दूसरे की तरह आपस में होता है या ग्रह पर्वतो का का रेखाओ के माध्यम से हथेली में सम्बन्ध होता है उन ग्रहो के बीच कुंडली में आपस में सबंध होता है।

जिस भी ग्रह पर्वत पर हथेली में शुभ चिन्ह होते है ग्रह पर्वत विकसित होते है वह ग्रह कुंडली में कोई न कोई शुभ योग बना रहे होते साथ कुंडली में यह ग्रह बली होते है।

हाथ की जीवन रेखा, भाग्यरेखा, सूर्यरेखा आदि किसी भी रेखा पर त्रिकोण, त्रिभुज, चतुर्भुज आदि जैसे शुभ चिन्हो का होना इन ग्रहो का कुंडली में केंद्र और त्रिकोण का शुभ सम्बन्ध होता है।

कुछ रेखाएं चन्द्र पर्वत से आकर भाग्यरेखा, जीवन रेखा, हृदय रेखा आदि रेखा आकर काटती है या इनमे जुड़ जाती है जो रेखाएं काटती है वह अशुभ होती है और जो रेखाएं जुड़ जाती है वह शुभ फल कारक होती है इन रेखाओ को प्रभाव रेखा कहते है।

कुंडली में यह रेखाएं जो रेखाओ को काट रही है उसी रेखा भाव/ग्रह से सम्बंधित अशुभ प्रभाव देती है और जो रेखाएं हथेली में चन्द्र पर्वत से आकर किसी रेखा में जुड़ जाती है कुंडली में वही रेखा उस भाव भावेश से सम्बन्धित शुभ फल देती है।जैसे हथेली में चन्द्र पर्वत से आकर कोई रेखा भाग्यरेखा में जुड़ जाती है तो यह कुंडली में नवम भाव/भावेश को अन्य शुभ भाव के स्वामियों का सहयोग कुंडली में दे रही होती है और जो रेखा भाग्यरेखा को काट रही होती है वह नवम भाव/भावेश को अशुभ भावेशों का या राहु जैसे ग्रह का दुष्प्रभाव जन्मकुंडली के नवम भाव/ भावेश को दे रही होती है।
इस तरह से अन्य और कई योग हथेली में होते है जिसका अध्ययन कुंडली और अन्य वर्ग कुंडलियो में किया जा सकता है और जन्म कुंडली व वर्ग कुंडली की सहायता से हाथ की रेखाओ को पढ़ा जा सकता है।
कुंडली और हथेली की रेखाएं एक ही विद्या के दो रूप है।
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