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देवीभागवत में प्रकृतितात्विक खगोलविज्ञान और अयन-रहस्य ~
भारतीय प्राचीन संस्कृति के साथ विज्ञान भित्तिक तथ्यों से भरपूर है। हमारे मुनिरुषी कृत पुराण- सम्भार। इन्ही पुराणों में से एक है, विद्वानों के द्वारा बहु चर्चित “देवीभागवत”, जो यथार्थ में विभिर्ण तत्व से भरपूर ज्ञान- विज्ञान की भंडारण में अत्यंत पुष्कल है। देवीभागवत पुराण में सिर्फ आदिशक्ति- तत्व नहीं, साथ- साथ प्रकृति- तत्व, इतिहास, सनातनी- संस्कृति, आर्योचित – संस्कार, कुछ सैद्धान्तिक खगोल- विज्ञान भी समन्वित है। खगोल- विज्ञान अन्तर्गत “अयन- तत्व” और “साम्यावस्था” के बारे में बहुत कुछ जानकारियां इसमे सम्यक श्लोकायित छंद में जैसे लिपिवद्ध किया गया है, हम जैसे ज्ञानार्थिओं के जानकारी वृद्धि के लिए अवश्य उपयोग्य। खगोल तत्त्व यथा-
“समस्थानमथासाद्य दिनसाम्यं करोति च।
यदा च मेष तुलयो: सञ्चरेद्धि दिवाकरः।। 26।।
समानानि त्वहोरात्राण्यातनोति त्रयीमयः।
वृषादिपञ्चसु यदा राशिष्वर्को विरोचते।। 27।।
तदाहानि च वर्धन्ते रात्रयोsपि ह्रसन्ति च।
वृश्चिकादिषु सूर्यो हि यदा सञ्चरते रवि:।। 28।।
तदापीमान्यहोरात्राणि भवन्ति विपर्ययात।।29।।”
(श्रीमद्देवीभागवतपुराण, स्कंध- 8, अध्याय- 14)
देवव्रतीय भाष्य– “सूर्य के विषुवत रेखा (भूमध्यरेखा) पर आने पर सूर्य की गति में समानता आ जाने से, दिन के परिमाण में समानता आ जाती है; अर्थात् दिन और रात बराबर होने लगते है।
“जब सूर्य मेष राशि (मार्च) पर संचरण कर रहे होते है, तो दिन क्रमशः बढ़ते हुए दिन- रात की ‘साम्यावस्था’ को प्राप्त होता है।।
“इसी प्रकार जब सूर्य तुला राशि (सितंबर) में संचरण कर रहा होता है, तो दिन क्रमशः घटते हुए, दिन- रात की ‘साम्यावस्था’ को प्राप्त होता है; अर्थात दिन- रात समान होने लगते है।।
“जब सूर्य वृष- मिथुन- कर्क- सिंह- कन्या राशि पर होते है, तब दिवस काल रात्रि से बड़ा होता है। और जब सूर्य बृश्चिक- धनु- मकर- कुम्भ और मीन राशि पर होता है, तब दिवस काल रात्रि से छोटा होता है।।
“इसी प्रकार जब सूर्य धनु (दिसंबर) में होते है, तब दिवस समय रात्रि की अपेक्षा सबसे छोटा होता है। और सूर्य के मकर राशि (जनवरी) में प्रवेश करते हुए जब उत्तरायण की ओर गतिमान होते है, तब रात्रि की अपेक्षा दिन क्रमशः बड़ा होता जाता है।
“ऐसे कुम्भ- मीन में होता हुआ मेष राशि में जब सूर्य हो, तब दिन- रात में ‘साम्यावस्था’ को प्राप्त होते है। फिर वृष- मिथुन राशि (जून) में पहुंचकर दिन सबसे बड़ा होता है और रात्रि सबसे छोटी होती है।
“तदनुसार मिथुन (जून) से विपरीत क्रिया के अनुसार सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर सूर्य के ‘दक्षिणायन’ की ओर गतिमान हो जाने से दिवस काल रात्रि की अपेक्षा क्रमश: घटता शुरू हो जाता है। और सिंह- कन्या से घटता हुआ, तुला में ‘साम्यावस्था’ अर्थात दिन- रात बराबर को प्राप्त होता है।
“ऐसे क्रमशः घटता हुआ वृश्चिक और धनु राशि में जाकर दिन सबसे छोटा और रात्रि सबसे बड़ी हो जाती है। अतः धनु राशि (दिसंबर) में सूर्य होने पर दिन सबसे छोटा होकर रात्रि सबसे बड़ी होते है। ऐसे मिथुन राशि (जून) में सूर्य होने पर दिन सबसे बड़ा और रात्रि सबसे छोटी होती है।
“इसी तरह सूर्य के मेष राशि (मार्च) में होने पर दिन क्रमशः बड़ा होता हुआ, दिन- रात बराबर (साम्यावस्था) हो जाता है। ऐसे ही सूर्य के तुला राशि (सितंबर) में होने पर दिन क्रमशः छोटा होता हुआ, ‘साम्यावस्था’ (दिन- रात बराबर) को प्राप्त होता है।।
“सूर्य के ‘दक्षिणायन’ में प्रवेश करने पर देवताओं की रात्रि प्रारम्भ होती है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देव शयनी) से कार्तिक शुक्ल एकादशी (देव उथनी) तक स्थूलतः इस चार माह देवताओं का ‘शयन काल’ होता है। और मकर राशि से सूर्य के ‘उत्तरायण’ होने पर, देवताओं का दिन शुरू (प्रातः – संध्या काल) होता है।।
इसलिए मकर संक्रांति (देवताओं का प्रातः संध्या पूजन का पवित्र समय) को त्यौहार की भांति मनाया जाता है।।”