शिशु त्रिपताकीरिष्ट : परिचय भाग
किसी नवजातक के लिए जन्मपत्री प्रस्तुति के बाद, इसके माध्यम से “शिशुरिष्ट” मालूम करने में ”गण्ड रिष्ट’ से अलग पाराशरीय ‘वाराधिपति’, ‘यामार्द्धपति’ और ‘दण्डाधिपति’ गणना पर आधारित अत्यंत उपादेय “पताकी चक्र विचार” को आजकल की हमारे अत्याधुनिक ज्योतिषियों क्यों नजर अंदाज करते हैं, ये है एक चिंतन योग्य विषय, क्योंकि शिशुरिष्ट- प्रकरण में इस विलुप्त प्रायः पद्धत्ति को आज भी कुछ वयोज्येष्ठ ज्योतिषी लोग पूर्व भारत के कुछ क्षेत्रों में बचाकर रखे हैं।
पताकी रिष्ट गणना पद्धत्ति
कुछ साल पहले तक शिशु जन्म के बाद तात्कालिक जन्मपत्री प्रस्तुति के साथ, “बाल्यरिष्ट गणना” के लिए उस में “पताकी” अंकन करने की पाराशरीय नियम था। उदाहरण के तौर पर नीचे प्रदर्शित “पताकी- चित्र” में पाराशरी प्रदत्त “निर्द्दिष्ट संख्या” उल्लिखित। उस चित्र में कुंडली में स्थित ग्रहक्रम को हूबहू वामावर्त्त में लिखकर, फिर सूत्रों के अनुसार “वाराधिपति”, “यामार्द्ध पति”, “दण्ड पति” ग्रहों का नाम लिखकर यथारीति में “रिष्ट विचार” करना है। यथाविधि पताकी विचार से यदि रिष्ट दिखाई देता और रिष्ट- खंडन के लिए यदि कुछ शास्त्रीय उपाय उपलब्ध, तो फल- विचार के बाद यथा समय में शास्त्रीय विधि मुताबिक आवश्यक प्रतिकार भी करना चाहिए। उल्लेखयोग्य यही है कि– इस विचार से रिष्ट- सूचित निर्द्दिष्ट समय भी मालूम पड़ जाता है।।
“रिष्ट” शब्द को ज्योतिष में दो अर्थ में समझा जाता है; यथा- एक “अकाल मृत्यु”– जो आयुर्बल के न्यूनता क्षेत्र में सम्भव है। और दूसरा “मृत्यु सम पीड़ा अथवा असुस्थि”– जो कुछ शुभयोग के साथ आयुर्बली क्षेत्र में ही सम्भव है।।
पताकी- साधन अंतर्गत वाराधिपति तथा यामार्द्धपति निर्णय सूत्र :
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पाराशरी “शिशुरिष्ट- प्रकरण” के आधार पर पताकी साधन में “स्थानीय समय” के अनुसार– सूर्योदय से सूर्यास्त तक समय को “दिवस” काल और सूर्यास्त से आगे परवर्त्ति सूर्योदय तक समय को “रात्र” काल– ऐसे दिन और रात मिलकर “अहोरात्र” गणना को भारतीय ज्योतिष में मान्यता प्राप्त और इस अहोरात्र के आधार पर ही “वार- गणना” किया जाता है।।
किसी शिशु का जन्म “रात्र” काल में हो या “दिवस” को, यंहा सिर्फ “जन्म वार” के अधिपति ग्रह ही “वाराधिपति” कहलाता है। इस हिसाब से रविवार का अधिपति “रवि”, सोमवार का “चंद्र”…. शनिवार का “शनि”– ऐसे ही श्रृंखलित क्रम यंहा पर लागू होता है।।
शिशुरिष्ट- निर्णय करने की अवसर में “वाराधिपति ग्रह” को आधार कर, दिवस तथा रात्र के लिए “यामार्द्ध- अधिपति ग्रह” निरूपण करने की नियम निर्धारित है। दिवस तथा रात्र काल प्रत्येक समान अवधि में (8/8) आठ- आठ यामार्द्ध में विभाजित। ऐसे एक “अहोरात्र” कुल 16 संख्यक अलग- अलग ग्रहों के यामार्द्ध भुक्त।।
दिवस यामार्द्धपति निर्णय
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(प्रथम से अष्टम क्रम)
(1) रविवार– रवि, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल, रबि।।
(2) सोमवार– चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल, रवि, शुक्र, गुरु, चन्द्र।।
(3) मंगलवार– मंगल, रवि, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल।।
(4) बुधवार– बुध, चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल, रवि, शुक्र, बुध।।
(5) वृहस्पतिवार– गुरु, मंगल, रवि, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु।।
(6) शुक्रवार– शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल, रवि, शुक्र।।
(7) शनिवार– शनि, गुरु, मंगल, रवि, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि।।
रात्र यामार्द्धपति निर्णय
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(प्रथम से अष्टम क्रम)
(1) रविवार — रवि, गुरु, चन्द्र, शुक्र, मंगल, शनि, बुध, रबि।।
(2) सोमवार– चन्द्र, शुक्र, मंगल, शनि, बुध, रवि, बुध, चन्द्र।।
(3) मंगलवार– मंगल, शनि, बुध, रवि, गुरु, चन्द्र, शुक्र, मंगल।।
(4) बुधवार– बुध, रवि, गुरु, चन्द्र, शुक्र, मंगल, शनि, बुध।।
(5) वृहस्पतिवार– गुरु, चन्द्र, शुक्र, मंगल, शनि, बुध, रवि, गुरु।।
(6) शुक्रवार– शुक्र, मंगल, शनि, बुध,रवि, गुरु,चन्द्र, शुक्र।।
(7) शनिवार– शनि, बुध, रवि, गुरु, चन्द्र, शुक्र, मंगल, शनि।।
— ऐसे यामार्द्धपति ग्रह को लेकर “दण्डाधिपति” तक की चर्चा प्राप्त होती है और उनका फल भी।
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