श्रावण मास और शिव पूजनका महत्व
जिनके हजार नाम और विशेषण हों तो इसी से पता चल जाता है की वही सर्वदाता परमात्मा है। योगियों ने शिवको साधना चतुष्टय के रूप में देखा और उसी आधारपर साधना करते हैं। विद्या,धन, सन्तान,मोक्ष यह साधन चतुष्टय कहा गया है।
सायन सूर्य जब कर्क राशि मे होते हैं तव सावन का महिना चलता है सौर्य मास के अनुसार ।अत्यन्त गर्मी के कारण जमींसे भाफ निकलता है और बादलके रूपमें बदलकर वर्षा हो जाती है ,इसी वर्षाके जल से पृथ्वीमें बहुत सारे जीव जन्म लेते हैं ,यह प्रक्रिया मानवके लिए प्राकृतिक और सुख कारक है ।
विज्ञान और ज्योतिषके आधारपर देखिए कि सावन माह में ऋतुदान (गर्भधारण)करनेके लिए स्त्री अतिरिक्त क्रिया करने की आवश्यकता होती नहीं है,वह स्वाभाविक क्रियासे गर्भधारण कर लेति है (अगर वह स्वस्थ आहार विहार कर रही है तो) यहाँतक विज्ञान के नजरिए से देखिए और इस से आगे ज्योतिष के आधार से देखिए।ज्योतिष में कर्क राशि जल तत्व की राशि है और गर्भवती स्त्रीको अधिक पानीकी आवश्यकता होती है जो इस समय आसानीसे पूरी होती है।अब आगे देखिए दशवें मासमें बच्चा पैदा होनेका समय बैशाख मास ,सूर्य उच्च राशिमें होते हैं शुक्र भी ज्यादातर उच्च राशिमें होते हैं ,मङ्गल भी अपनी स्वराशिमें होते हैं ।इतने अच्छे योग ,वसन्त ऋतु में पैदा होने वाला बच्चा भाग्यशाली तो होता ही है अपने माँ बापको भी कृतार्थ करता है,संतुष्ट करता है,मेहनत और परिश्रमका सही फल दिलाता है ।इतना ही नहीं उस भाग्यशाली संतान के कारण माँ बाप भी आशक्ति रहित हो जाते हैं ,संन्यस्त हो जातेहैं घर में रहकर भी और कुछ भाग्यशाली व्यक्ति दण्ड धारण करके किसी तीर्थ में भगवान की निर्गुण भक्ति करते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं।
यह है सावन मास में गृहस्थके शिव उपासना के फल।इसी तरह विद्या चाहने वाले भी शिवभक्ति से ज्ञानी हो जाते हैं ,उनका मेहनत व्यर्थ नहीं जाता।
वित्त की प्राप्ति भी शिवभक्तों को होती है।जो शिवभक्त नित्यप्रति शिवकी उपासना करते हैं वह निर्धन तो हो ही नहीं सकते।जो अभक्त हैं और अन्यायसे धन अर्जित करते हैं वह व्यय करना भी नहीं जानते ,उनका व्यय अनैतिकतामें होता है।
सावनमे शिव पूजन की आयुर्वेदीय कारण;- वर्षा ऋतुमें शरीर और इसके अंग बहुत शिथिल होते हैं , कारण पित्त सही काम करता नहीं है ,पित्तमें सूजन आदि आते हैं ,और गर्म दूध इसके लिए जहर समान है अतः दूध से शिवका अभिषेक करें तो अपना स्वास्थ्य खराब होने से हम बच गए और दूध भगवान को चढ़ गया।और यह दूध जिस मिट्टी में मिलेगा वहाँ एक साथ करोड़ों जीवको भोजनके रूपमें प्राप्त हो जाएगा।इन करोडों जीवों में जो प्रकृति मैत्रि हैँ या मानवमैत्रि हैं वह जीवित रहेंगे और घातक जीव मर जाते हैं। बेलपत्र ,भाँग ,धतूर ,भष्म आदि शिवको प्रिय है यानी यह चिजें चढ़ती हैं ।यह सब पित्तदोषको शमन करने वाली औषधीयाँ हैं ,इन्हें स्पर्श मात्र करने से सात्विक आहार करने वाले और सात्विक प्रवृतिके लोगों की बिमारी ठिक होती हैं ,राजस और तामस प्रवृतिके लोगों को बिमारीके अनुपातिक हिसाबसे यह प्रसाद या औषधिके रुपमें लिया जा सकता है।
सावनके रिमझिम बारिश में हो सके तो नहाना चाहिए ,इससे कई तरह के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं ।शहरीय और औद्योगिक क्षेत्रमें वर्षाके जल से न नहाएं तो अच्छा है क्योंकि यहाँ के आसमान में धूल और जहर् होता है।
सावन मास की झूला झूलना और सामुहिक लोकगीत या लोकनृत्य करना समाजिक सद्भावनाका प्रतिक है,बड़े और छोटे की भाव समाप्त करने के लिए है,आनन्दमयी जीवन व्यतित करने के लिए है।
सावनमें शिव पूजन और शिवलिंगार्चन अपने आपको शिवमय बनाने के लिए है।परन्तु विधर्मिलोग शिवको दूध चढ़ाना व्यर्थ मानते हैं और गरीबको पिलाने की वकालत करते हैं ,वहीं जो हमारे विज्ञानयुक्त धर्म शिवमें और जीवमें समान महत्व रखती है,शिव प्रसाद दीन दुखी और गरीबोंमें बाँटनेको कहती है साथ ही गरीब और असहाय होने का कारण ढूंढकर पापों से मुक्ति दिलाती है । शिवपुराणके यह वचन देखिए
*यद्गृहे शिवनैवेद्यप्रचारोपि प्रजायते ।*
*तद्गृहं पावनं सर्वमन्यपावनकारणम् ।।*
शिवपुराण, वि० सं०२२/६
‘‘जिस घर में शिवजी को नैवेद्य लगाया जाता है या अन्यत्र से शिवजी को समर्पित नैवेद्य प्रसाद रूप में आ जाता है, वह घर पवित्र हो जाता है और अन्य को भी पवित्र करने वाला हो जाता है ।‘‘
*दृष्ट्वापि शिवनैवेद्ये यांति पापानि दूरतः ।*
*भक्ते तु शिवनैवेद्ये पुण्यान्या यांति कोटिशः ।।*
शिवपुराण, विश्वेश्वरसंहिता २२/४
‘‘शिवनैवेद्य को देखने मात्र से ही सभी पाप दूर हो जाते हैं और शिवजी का नैवेद्य भक्षण करने से तो करोड़ों पुण्य स्वतः आ जाते है