सौर परिवार ~ विज्ञान की एक अबूझ पहेली-
ज्योतिष विज्ञान में सूर्य का विशेष महत्व है। सनातन धर्म सूर्य को प्रत्यक्ष देवता मानता है तो ज्योतिष ने भी सूर्य ग्रह को पिता माना है। पिता इसलिये क्योंकि वह सभी ग्रहों के जनक हैं। जैसा कि विज्ञान ने भी माना है कि सौरमण्डल के सभी ग्रह सूर्य से ही छिटके हुए कणों के संयोजन से बने हैं।
प्राचीन खगोलशास्त्र मानता था कि सभी ग्रह पृथ्वी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं लेकिन अब यह सिद्ध है कि सूर्य इस सोलर सिस्टम का केंद्र है। फिर भी प्राचीन खगोल शास्त्र ने सूर्य को ज्योतिषीय दृष्टि में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना है। पृथ्वी से सबसे नजदीक ग्रहों में शुक्र और बुध के बाद सूर्य आता है लेकिन आकार में अतिदीर्घ होने के कारण सूर्य का प्रभाव इन सबमें सर्वाधिक है। सूर्य पृथ्वी पर ऋतुओं के कारक, ऊर्जा प्रदाता और पालक हैं। वैसे ही, जैसे पिता।
सूर्य के पथ को ज्योतिष ने 12 बराबर भागों में विभाजित किया है। चूंकि गति सापेक्षिक होती है इसलिये हम कह सकते हैं कि पृथ्वी का सूर्य के इर्द-गिर्द का परिक्रमण पथ भी वही हुआ जो प्राचीन खगोल विज्ञान में सूर्य का पृथ्वी के इर्द-गिर्द होता था। यह दो ट्रेनों जैसा मामला है जिसमें चलती हुई ट्रेन पर बैठे व्यक्ति को दूसरी रुकी हुई ट्रेन उल्टी तरफ चलती हुई लग सकती है। इन बारह भागों को 12 राशियों का नाम दिया गया है। पूरे चक्कर को 360 डिग्री माना जाता है और एक राशि को 360÷12=30 डिग्री।
बारह राशियों में परिक्रमण का यह सफर एक साल में पूरा होता है, इस तरह हर महीने सूर्य एक राशि में लगभग रहता है। इसी तरह से कुंडली का निर्धारण भी होता है। लग्न कुंडली में सूर्य जिस राशि में होता है सूर्योदय के समय लगभग दो घण्टे तक वह राशि पूर्व में उदित होती है। सूर्योदय के समय वही राशि जन्म लेने वाले जातक की कुंडली में लग्न स्थान पर होती है (लग्न स्थान कुंडली के बीच बने आयत का ऊपर वाला खाना कहलाता है)। लगभग हर दो घण्टे पर लग्न खिसककर एक स्थान सरक जाता है और सूर्य जिस राशि मे है वह राशि क्रमशः बारहवें, फिर ग्यारहवें, फिर दसवें भाव में पहुंचती रहती है। देखा जाएं तो सूर्य की यह उल्टी गति पृथ्वी के सूर्य के इर्द गिर्द घूमने की स्थिति के सापेक्ष ही है। अगर वाकई में सूर्य पृथ्वी के इर्द गिर्द घूमता तो यह सीधा चलती, यानी पहले से दूसरे खाने में।
उदाहरण के लिए आज यानि 26 फरवरी 2021 को सूर्य कुम्भ राशि में है, 13 डिग्री से कुछ ज्यादा ही। यानि आज के दिन तक सूर्य इस राशि में लगभग आधे से कम समय व्यतीत कर चुका है। सुबह पौने सात बजे के करीब सूर्योदय हुआ है तो उस समय सूर्य जिस राशि में स्थित है (कुम्भ), वह राशि पूर्व में उदित रही होगी और लग्न में ऊपर के खाने में रही होगी। अब चूंकि लगभग तीन घण्टे बीत चुके हैं तो अब सूर्य ग्यारहवें घर में खिसक गया होगा और लग्न में मेष राशि का उदय हुआ होगा।
यह सब ज्योतिष का जटिल गणितीय भाग है, जिसके अध्ययन के लिये आपको समय देना पड़ेगा। मैं सरल भाग बता देता हूँ, अपनी समझ से।
ज्योतिष में सूर्य का रंग नारंगी लाल, प्रकृति गर्म और पुरुष पिंड की संज्ञा दी गयी है। पूर्व दिशा का स्वामी है यह ग्रह। धातुओं में तांबा और सोना इसके प्रभाव में आते हैं। पुरुष की जन्मकुंडली में सूर्य से पिता, सरकारी सेवा और मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का विचार किया जाता है। स्त्री की कुंडली में इससे पिता के साथ ही पति का भी विचार किया जाता है। सिंह राशि का स्वामित्व सूर्य के पास है। मेष में यह उच्च का और तुला में नीच का होता है। मेष राशि में 10 डिग्री पर सूर्य परमोच्च व तुला में इतने पर ही परमनीच माना गया है। कर्क, वृश्चिक, धनु और मीन राशियां सूर्य की मित्र हैं.. मकर और कुम्भ शत्रु। शेष में सूर्य सम प्रकृति होते हैं।
यह सब शास्त्रीय कथन हैं। कुछ मैं अनुभव से बताता हूँ। पहले, पांचवें और नौवें भाव में सूर्य अच्छा फल देते हैं। यहां बैठे हों तो उनकी पूजा नियमित तौर पर करनी चाहिए।
दूसरे, चौथे व सातवें भाव में सूर्य अच्छे और बुरे दोनो फल देते हैं।
तीसरे, छठें और ग्यारहवें भाव में अनिश्चित फल देते हैं।
आठवें व बारहवें भाव में बुरे फल देते हैं। यहां बैठे हों तो दशा अंतर्दशा में व्रत करके दान देना राहत देता है।
दशम भाव में सूर्य शत्रु या नीच राशि में भी कुछ अच्छे फल अवश्य देते हैं। उच्च या स्वराशि में हों तो कहने ही क्या!
सूर्य से प्रभावित जातकों का चेहरा विशिष्ट होता है। शरीर के अनुपात में थोड़ा अलग। उसमें भी भाव से सम्बंधित अलग फल हैं। जातक की आंखें भूरी शहद जैसे रंग की हो सकती हैं।
सूर्य अगर अच्छा हो तो जातक साहसी, नेतृत्व करने वाला, सुकर्म करने की इच्छा रखने वाला और यशस्वी होता है। जीवन में प्रगति होती है। बुरी राह पर भी चल निकला हो तो पॉजिटिव सूर्य उसे सन्मार्ग, उन्नति और प्रसिद्धि के पथ पर ले आता है। जातक क्रोधी हो सकता है लेकिन पापकर्म से बचता है।
सूर्य पीड़ित हो तो जातक अविश्वसनीय, अहंकारी, कुंठित, निंदा करने की प्रवृत्ति वाला और ईर्ष्यालु होता है। पीड़ित सूर्य उसे अपयश पाने से रोक नही पाता और अन्य अनुकूल ग्रहों के प्रभाव से सुकर्मी होते हुए भी जातक निंदित होता है।
कुंडली में सूर्य यदि लग्न, पांचवे और नवें भाव का स्वामी हो तो दुःस्थान पर ही क्यों न बैठा हो.. माणिक्य अवश्य पहनना चाहिए। यह न सोचें कि नीच राशि में है, अष्टम या द्वादश में है।
सूर्य का वैदिक मंत्र-
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।।
सूर्य का तांत्रिक मंत्र-
ॐ घृणि सूर्याय नमः
सूर्य का बीज मंत्र-
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
सूर्य को जल देने, आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने और पंचांग की सप्तमी तिथि को पड़ने वाले रविवार को आराधना करने से सूर्य शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
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