गोचर ग्रहों का भावानुसार फल
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गोचर शब्द “गम” धातु से बना है, जिसका अर्थ है “चलने वाला”। “चर” शब्द का अर्थ है “गतिमय होना”। इस प्रकार “गोचर” का अर्थ हुआ-“निरन्तर चलने वाला”।
ब्रह्माण में स्थित ग्रह अपनी-अपनी धुरी पर अपनी गति से निरन्तर भ्रमण करते रहते हैं। इस भ्रमण के दौरान वे एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। ग्रहों के इस प्रकार राशि परिवर्तन करने के उपरांत दूसरी राशि में उनकी स्थिति को ही “गोचर” कहा जाता है। प्रत्येक ग्रह का जातक की जन्मराशि से विभिन्न भावों “गोचर” भावानुसार शुभ-अशुभ फल देता है।
भ्रमण काल-
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सूर्य का ३० दिन ,शुक्र का २७ दिन ,बुध का २१ दिन भ्रमण काल , चंद्र का सवा दो दिन, मंगल का ४५ दिन, गुरू का १ वर्ष, राहु-केतु का डेढ़ वर्ष व शनि का भ्रमण का ढ़ाई वर्ष का होता है अर्थात् ये ग्रह इतने समय में एक राशि में रहते हैं तत्पश्चात ये अपनी राशि-परिवर्तन करते हैं।
विभिन्न ग्रहों का “गोचर” अनुसार फल
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१. सूर्य
सूर्य जन्मकालीन राशि से ३,६,१० और ११ वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ देता है।

२. चंद्र
चंद्र जन्मकालीन राशि से १,३,६,७,१०,व ११ भाव में शुभ तथा ४, ८, १२ वें भाव में अशुभ फल देता है।

३. मंगल
मंगल जन्मकालीन राशि से ३,६,११ भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

४. बुध
बुध जन्मकालीन राशि से २,४,६,८,१० और ११ वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

५. गुरू
गुरू जन्मकालीन राशि से २,५,७,९ और ११ वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

६. शुक्र
शुक्र जन्मकालीन राशि से १,२,३,४,५,८,९,११ और १२ वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

७. शनि
शनि जन्मकालीन राशि से ३,६,११ भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

८. राहु
राहु जन्मकालीन राशि से ३,६,११ वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

९. केतु
केतु जन्मकालीन राशि से १,२,३,४,५,७,९ और ११ वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।


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