May be an image of jacaranda, tree and nature               

जैकरंडा या नीला गुलमोहर
अमित ने इसे पांच रंगों में खिलने वाला पेड़ कहा है, किन्तु श्री देवेन्द्र मेवाड़ी जी ( प्रसिद्ध लेखक ) इसे केवल इसी रंग का मानते हैं। नीला गुलमोहर।
शोध छात्र अमित चौबे ने यह चित्र भेजा है।
सोच रहा हूँ कि हमारे युवा खिले हुए फूल जैसे हैं। जीवन को खिलते हुए देखना युवा मन की अभिलाषा है। जहां नेता लोग ‘लाशों की राजनीति’ कर रहे हैं, वहीं हमारे युवा एक-दूसरे को पुष्प भेज रहे हैं। लाश को हटा देने पर फूल ही ख़िलते हैं।
पुष्प मन, भाव और आकांक्षा रूप होते हैं। जैसे आकांक्षाएं विलीन होकर कर्म बन जाया करती हैं, वैसे ही पुष्प विलीन होकर फल में , बीज में रूपांतरित हो जाते हैं। हमारी सभी इच्छाएं सार्थक नहीं होती, किन्तु प्रकृति के हर रंग सुखकर, सार्थक होते हैं। आकांक्षा रहित इच्छा पवित्र होती है। पुष्प प्रकृति का निष्कलुष प्रेम है… सार्थक अभिव्यंजना।
पुनश्च: मुझे नहीं मालूम कि पहला प्रेमी कौन था, जिसने अपनी प्रेमिका को फूल दिए थे। महाभारत का एक प्रसंग है। द्रोपदी की इच्छा सफेद कमल प्राप्त करने की हुई। अपनी इच्छा उन्होंने भीम को बताई। भीम सफेद कमल लेने हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में गए। आज के उत्तराखंड का प्रादेशिक पुष्प ब्रह्म कमल है। ख़ैर। जहां पुष्प ख़िलते हैं, वहां फ़ल भी लगते हैं।पुष्प फ़ल के होने का पूर्व रूप है। जहां पुष्प नहीं, वहां फ़ल की भी संभावना भी नहीं। पुष्प बिना फ़ल कैसे आएंगे?
पुष्प एक ‘प्रतीक’ रचता है। प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को पुष्प देकर अपने मनोभाव प्रदर्शित कर लेना चाहते हैं।मनुष्य कभी-कभी ( या प्रायः ही ) बेबस होता है। वह बिना ‘प्रतीक’ के अपने ‘भाव-सत्य’ का उद्घाटन नहीं कर पाता। देवताओं को पुष्प चढ़ाने की परंपरा हो या प्रेमी-प्रेमिका को पुष्प देकर प्रेम प्रकट करने का मनोभाव.. आकांक्षा। मनुष्य प्रतीक रचता है, प्रकृति ‘संकेत’ करती है। “पुष्प प्रकृति का निष्कलुष संकेत है”।
पुष्प ख़िलते हैं और फिर अपने को रूपांतरित कर लेते हैं। मनुष्य की सार्थक इच्छाएं, कर्म रूपांतरण की प्रक्रिया से गुज़रते हैं। निरर्थक या जड़ व्यक्ति रूपांतरण की कला नहीं जानता। वह एक-जैसे बने रहने के उद्दाम-लालसा से ग्रस्त रहता है, ऐसे मनुष्यों के लिए पुष्प एक ‘सीख’ है। “रूपांतरण प्रकृति और मनुष्य की सृजनात्मक उपलब्धि है”।
‘फूल मरै पर मरै न बासू’- जायसी
( एक उदास शाम )©