शिवपार्वती~एक अलौकिक साधना-
जन्म कोटि लगि रगर हमारी, बरउँ संभु न तो रहउँ कुंआरी – तुलसीबाबा
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कल शिव की मोहक छवि पर मेरा चक्षुपात हुआ। मुझे पार्वती का शिवपद अनुराग स्मृत हो आया। सर्वगुणसम्पन्न एक युवती का प्रेम बाहर से जितना तपोमय था, भीतर से उतना ही कोमल। हिल्लोल उठी होंगी, तन-मन तरंगायित हुआ होगा तो वही छवि उतरी होगी शैलजा की आँखों में।
पार्वती जो सौंदर्य की अनन्या प्रतिमूर्ति; जिसकी मृदुल स्मिति पर कविकुलगुरु कालिदास कुमारसम्भवम् में लिखते हैं –
पुष्पं प्रवालोपहितं यदि स्यात् मुक्ताफलं वा स्फुटविद्रुमस्थम् !
ततोस्नुकुर्याद् विशदस्य तस्यास्ताम्रौष्ठपर्यस्तरुच: स्मितस्य !!
( लाल कपोल पर एक उज्ज्वल पुष्प रखा जाए अथवा स्वच्छ मूंगे के मध्य मोती जड़ा जाए, तभी ये पुष्प और मोती उस स्मिति की समानता कर सकते हैं )
शिव के प्रति पार्वती-प्रेम की विशदता है तो एक हठमयी प्रण भी। रूप का गौरव तो महाकाल की क्रोधाग्नि में दग्ध हो गया था — निनिन्द रूपं ह्रदयेन पार्वती प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता ( कुमारसम्भवम्, कालिदास )
तन विगलित हुआ तो मन का आत्यंतिक सौंदर्य उभरा; यहीं से तपस्या की एक दुर्गम राह ….
हित्वा हारं तथा चर्म मृगस्य परमं धृतम्‌ !
जगाम तपसे तत्र गंगावतरणं प्रति !!
ग्रीष्मे च परितो प्रज्वलन्तं दिवानिशम्‌ !
कृत्वा तस्थौ च तन्मध्ये सततं जपती मनुम्‌ !! ( शिव पुराण )
हार का परित्याग, वल्कल वस्त्र धारण करना, घोर निदाघ में अग्नि के समक्ष तपश्चर्या … एक दिन अन्न-जल छोड़ दिया, और अंततः पर्ण खाना भी .. यूँ हुई एक राजकुमारी अपर्णा।
शिव अंशी हैं। उनके प्रति आसक्ति का यह उपक्रम अद्वैत का अन्यतम उदाहरण। विराट में घुलने की चाह एक बिंदु को किस तरह गला सकती है। प्रिय को प्रसन्न करने वाले सौंदर्य का एक साम्राज्य खड़ा करने वाला प्रेम। कितनी गतियाँ, कितने आयाम।
भीतर विकलता भरी है लेकिन प्रण में स्थैर्य की आवश्यकता … संयोग की संभावना और वियोग की वेदना का समवेत उत्स अपर्णा का हृदय था। किंतु वह शिव पर अटल थी। गिरिजा का एकात्म पराक्रम पिता की गोदी में से जल बनकर कल-कल निनाद के साथ अविरल बहता जाता था। नमामि गौरीवरं. !!👣🌹🙏
भक्तमहादेव-
महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?
शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि हे देवी ! जो व्यक्ति एक बार राम कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ।
पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगाते हैं?
उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग राम नाम सत्य है कहते हुए शव को ला रहे थे।
शिव जी ने कहा कि देखो पार्वती ! इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो राम नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य राम नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगों के मुख से राम नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ।
राम नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे अगाध प्रेम रहता है।
एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से भोजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए।
शिव जी ने कहा कि इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो।
पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुनना चाहती हूँ।
शिव जी ने बताया, केवल एक बार राम कह लो तुम्हें सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा।
एक राम नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है।
पार्वती जी ने वैसा ही किया।
पार्वत्युवाच –
केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?
पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।
ईश्वर उवाच-
“श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे”।
“सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने”।।
यह राम नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।
“आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्”।
“लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमाम्यहम्”।
भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल राम नाम का गर्जन(जप) है।
“भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्”।
“तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्”।
प्रयास पूर्वक स्वयम् भी राम नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके राम नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दूसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है।
इसीलिए हमारे देश में प्रणाम–
राम राम कहकर किया जाता है।